तेलीबांधा में सबसे ऊंचे तिरंगे का तिरस्कार




2 घंटे तक अंधेरे में रहा, निगम ने फिर दिखाया सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा


एंट्रो- सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ठेंगा दिखाने में माहिर नगर निगम ने एक बार फिर वहीं बात दोहराई। उद्घाटन के दूसरे ही दिन तेलीबांधा के मरीन ड्राइव पर लगा देश का  सबसे ऊंचा तिरंगा दो घंटे तक अंधेरे में ही रह गया। जब कि सर्वोच्च अदालत का ये सख्त आदेश है कि तिरंगे को या तो सूर्य ढलने के पूर्व पूरे सम्मान के साथ उतार लिया जाए अथवा उसके पास पूरी रौशनी रखी जाए। इसके लिए जिम्मेदार महापौर और कलेक्टर की गैर जिम्मेदारियों का त$काजा ये है कि इतनी बड़ी गलती होने के बाद भी महापौर ने तो बयान दे दिया मगर कलेक्टर चुप्पी साध गए। सवाल तो ये है कि ऐसी गैर जिम्मेदार प्रशासनिक मशीनरी के भरोसे आखिर कैसे और कब तक चलेगी ये सरकार?

रायपुर।  राजधानी के नगर निगम द्वारा फहराए गए देश के सबसे ऊंचे तिरंगे को पहले ही दिन अपमान का सामना करना पड़ा। शनिवार को बड़े तामझाम के साथ ध्वज फहराया तो जरूर गया लेकिन दूसरे ही दिन सूर्यास्त के बाद ध्वज अंधेरे में डूब गया, जबकि सुप्रीप कोर्ट के सख्त निर्देश है कि सूर्यास्त के बाद ध्वज में रौशनी पडऩी चाहिए।
गौरतलब है कि देश का सबसे ऊंचा तिरंगा छत्तीसगढ़ में फहराया गया। सीएम डॉ.रमन सिंह ने तेलीबांधा के मरीन ड्राइव में 82 मीटर ऊंचे तिरंगे का अनावरण बटन दबाकर किया था।
क्यों है सबसे ऊंचा तिरंगा-
 इसके पहले रांची में 81 मीटर तिरंगा फहराया गया था लेकिन रायपुर नगर निगम के प्रयासों से राजधानी में 82 मीटर ऊंचा ध्वज फहराकर ये एक नया रिकार्ड बनाया गया।
नगरीय निकाय मंत्री भी कर चुके हैं तिरंगे का अपमान-
राज्य में शहीदों और तिरंगे का अपमान कोई नई बात नहीं है। प्रदेश के नगरीय निकाय मंत्री अमर अग्रवाल की गाड़ी पर दो बार लगातार उल्टा तिरंगा लटका हुआ पाया गया। इसके बावजूद भी इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में जब नगरीय निकाय मंत्री का ये हाल हो वहां भला नगर निगम की क्या बिसात हो सकती है।
महापौर का सियासी प्रवचन-
घटना के संदर्भ में जब महापौर प्रमोद दुबे से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो उन्होंने एक लंबा सा प्रवचन सुनाया। उन्होंने बताया कि इसकी जिम्मेदारी एएमसी को दी गई है।  जिस लड़के को लाइट के बॉक्स की जिम्मेदारी सौंपी गई है वो खाना खाने चला गया था। उसके बाद जैसे ही पता चला मैंने (महापौर) उसे फटकार लगाई और तब जाकर रौशनी हो पायी। सवाल तो ये उठता है कि शाम को छह बजे किसको इतनी भूख लगती है? अगर मान भी लें कि वो लड़का शाम को खाना खाने चला भी गया था तो क्या उसको ये नहीं बताया गया था कि सूर्य ढलते ही यहां रौशनी की जरूरत पड़ेगी? और अगर समय रहते रौशनी नहीं की गई तो फिर ये देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश का उल्लंघन माना जाएगा?
कलेक्टर ने नहीं उठाया फोन-
इस संदर्भ में कलेक्टर ओम प्रकाश चौधरी से जब उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो उन्होंने लगातार रिंग जाने के बाद भी फोन पिक नहीं किया। सवाल तो ये है कि फिर ऐसे लोगों को सरकार ने फोन क्यों दिए?
नगर के मुखिया के बाद दूसरी जिम्मेदारी जिलाधिकारी की बनती है। अब ऐसे में अगर कोई इतना गैर जिम्मेदार अधिकारी हो तो फिर उससे क्या उम्मीद लगाई जा सकती है? प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यशैली पर लगातार उंगलियां उठती रही हैं।
खुदमुख़्तार बन बैठी है प्रशासनिक मशीनरी -
राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों की अनदेखी का शिकार सांसद और प्रदेश के तमाम मंत्री लगातार होते आ रहे हैं। लोगों का तो यहां तक मानना है कि प्रदेश को प्रशासनिक मशीनरी ही चला रही है। नेताओं के आदेश इनकी टेबल्स पर पड़े- पड़े तब तक धूल फांकते हैं जब तक कि इनकी कृपा नहीं होती। ऐसे अधिकारियों की कृपा किस पर और कौन सी शर्तों पर होती है ये भी किसी से छिपा नहीं है।


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