गरीबों की प्यास पर प्रशासनिक पाखंड


मुझको नज्मों जब्त की तालीम देना बाद में,  पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो। 



भीषण गर्मी में प्यास लगने पर अगर पानी न मिले तो कैसा लगता है? पानी का मूल्य तो वही समझ सकता है जिसको सिर पर घड़ा लेकर मीलों पैदल चलने पर एक गुंडी पानी नसीब होता है। राज्य में जनता को पानी देने के  दावे जल संसाधन विभाग द्वारा जोरशोर से किया जा रहा है। सरकारी फाइलों में जमकर पानी बहाया जा रहा है। आलम ये है कि जल संसाधन विभाग के जानकार अधिकारियों ने ढाई हजार से ज्यादा गांवों के साढ़े चार हजार से अधिक तालाबों को लबालब भरने का दावा कर दिया। पड़ताल में पता चला कि वहां तो पानी ही नहीं आया। सीएम अपने सुराज का साज बजाने में मस्त हैं। राज्य के तमाम इलाकों में जनता पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है। लोग झेरिया का पानी निकाल कर पीने पर मजबूर हैं। तो कुछ जगहों पर तो तालाबों का कीचडय़ुक्त पानी भी उबाल कर पीने की खबरें आती रही हैं।
ऐसे में सुराज के स्वांग का मतलब समझ से परे है। ठीक उसी तरह जिस तरह इस देश में लोकतंत्र की बात की जाती है। आलम ये है कि लोक ने अपनी सेवा के तंत्र का गठन तो किया, मगर अब वही तंत्र तमाम ताकतों को अपने हाथ में लेकर भष्मासुर बन गया है। और अब लोक को भस्म करने के लिए दौड़ा रहा है। लोक की औ$कात देश में तीन कौड़ी की हो गई है। ऐसा हम नहीं राज्य के विद्वान प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है। वे इस बात को भूल गए कि इसी तीन कौड़ी के लोक के पैसों से उनका घर चलता है। महंगी गाडिय़ों में घूमते हैं और तमाम रुतबा और ओहदा इसी लोक का दिया हुआ है। अब ऐसे लोक को लतियाना भला कहां की भलमनसाहत है?
राज्य में प्रशासनिक अधिकारियों का कुनबा जहां-तहां अनर्गल तर्क ठेेल कर अपनी गलत बातों को सच का जामा पहनाने में लगा हुआ है।
जनता की प्यास से इतना बड़ा मजाक पहले तो कभी नहीं देखा। राज्य में प्रशासनिक और सियासी मशीनरी के समीकरण का बिगाड़ राज्य के लिए घातक बनता जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान प्रदेश की 2.55 करोड़ जनता का हो रहा है। जो पैसे देने के बाद भी ठगी जा रही है। सारे टैक्स चुकाने और तमाम सरकारी देयकों का भुगतान करने के बाद भी जनता के हिस्से में बेबसी, लाचारी, फटकार, बहाने और उससे ज्यादा हुआ तो पिटाई के अलावा और कुछ भी मिलता दिखाई नहीं देता। तमाम किसानों की आत्महत्याओं के पीछे भी कहीं न कहीं इसी तंत्र का हाथ होता है, लेकिन धन्य है हमारे देश का कानून और उसकी कमजोर नज़र जो आज तक इनके खिलाफ न तो सुबूत इक_ा कर पाई और न ही इनको कोई सजा दिलवा पाई।
सरकार अगर वास्तव में गरीबों की मदद करना चाहती है तो सीएम को तत्काल सुराज छोड़कर उन गांवों में जाना चाहिए, जहां लोग झेरिया का पानी पी रहे हैं। जहां लोग मीलों सिर पर घड़ा रखकर गर्मी में पैदल जा रहे हैं। उनको उनके हिस्से का पानी दिलवाएं। इसके साथ ही साथ गरीबों के हिस्से का जो पानी उद्योगों को पिलाया जा रहा है उसको फिलहाल वर्षात आने तक स्थगित कर दें, इससे राज्य का भला होगा।
-----------------------------------------------------------------------------------------------

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव