तिरंगे का तिरस्कार



महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयां,नाज़ुक सा है जो $फर्क़ गुनाहो सवाब में। 


उद्घाटन के ठीक एक दिन बाद ही देश के सबसे ऊंचे तिरंगे का प्रदेश सरकार ने अपमान भी कर डाला। दरअसल सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश है कि सूर्यास्त के बाद भी तिरंगे को रौशनी में रखा जाए, पर नगर निगम के कर्मचारियों की मनमानी के चलते हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक लगभग दो घंटे तक अंधेरे में रहा। इसके बाद रात साढ़े आठ बजे वहां बिजली आई। इससे प्रदेश सरकार की कथनी और करनी को आसानी से समझा जा सकता है। इस झंडे के लहराए जाने वाले कार्यक्रम में भी महापौर और नगरीय निकाय मंत्री अमर अग्रवाल से कुछ मीठी नोंक झोंक की भी खबर आई थी। हालांकि उसको इतनी गंभीरता से नहीं लिया गया था। राज्य की ध्वस्त हो चुकी प्रशासनिक मशीनरी का त$काजा ये है कि जिले के कलेक्टर ओम प्रकाश चौधरी से इस बारे में जब उनका पक्ष लेने की कोशिश की गई तो उन्होंने फोन तक नहीं उठाया। ऐसे ही लापरवाह अधिकारियों के भरोसे राज्य सरकार लोक सुराज का ख्वाब पाले बैठी है।
राजधानी में शहीदों का अपमान, देवी-देवताओं का अपमान और फिर अब तिरंगे का अपमान कोई नई बात नहीं है। कार्रवाई नहीं होने के कारण यहां के नगरीय निकाय मंत्री की सरकारी गाड़ी पर दो- दो बार तिरंगा उल्टा लटका मिला। खबरें आने के बावजूद भी न तो सरकार ने कोई कदम उठाया और प्रशासन में इतनी कूवत कहां कि वो इनके खिलाफ चूं भी बोल दे? प्रदेश की जनता प्रशासनिक मशीनरी और नेताओं के बीच फुटबाल बनी हुई है। नेता प्रशासन तो प्रशासन नेता की ओर इसको किक करते आ रहे हैं। किसी के पास भी जाए जनता पर उसका काम बिना दक्षिणा दिए नहीं बनता।
सरकार को चाहिए कि इस मामले को संज्ञान में लेते हुए तत्काल महापौर, कलेक्टर और भी जो अधिकारी तथा दूसरे लोग कानून के दायरे में आते हों, सभी पर विधि सम्मत  कार्रवाई की जाए। कार्रवाई भी ऐसी कि एक नज़ीर बन जाए ताकि कोई दूसरा हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के इस प्रतीक के साथ आइंदा खिलवाड़ न कर सके। इन तथाकथित पढ़े -लिखे लोगों को भी समझ में आ जाना चाहिए कि ये तिरंगा है मजाक नहीं।

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