सबक सिखाना जरूरी
तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें य$कीन नहीं।
राजधानी में अचानक स्पाइनल कार्ड के रोगियों की तादाद में ईजाफा हुआ, तो माथा ठनक गया। तफ्तीश की तो पता चला कि ऐसा होने के पीछे राजधानी की सड़कों पर बने अमानक रोड ब्रेकर्स हैं। अब सवाल ये कि इनकी वार्डों की सड़कों पर क्या स्थिति है। ये जानने के लिए जब राजधानी के वार्डों का दौरा किया तो हालात चौंकाने वाले मिले। यहां के लगभग सभी वार्डों में अमानक गति अवरोधकों की तादाद काफी ज्यादा है। अति तो हो गई कामरेड सुधीर मुखर्जी वार्ड में जहां महज आधे किलोमीटर सड़क पर 30 रोड बे्रकर्स पाए गए हैं। महापौर का कहना है कि हम तो दोनों ही ओर से पिस रहे हैं। अगर बनाएं तो मीडिया खराब कहती है और न बनाएं तो लोग कोसते हैं।
दरअसल राजधानी के रसूखदारों ने सड़कों को अपनी जागीर समझ रखा है। ऐसे में जो जहां भी पाता है वहीं अमानक गति अवरोधक बनाने बैठ जाता है। उस पर भी तुर्रा ये कि इनकी पहुंच बहुत ऊपर तक है। कोई इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। कइयों ने तो नगर निगम तक को ही चुनौती दे डाली कि अगर महापौर में हिम्मत हो तो तुड़वा कर दिखा दें। सुनकर हम तो दंग रह गए।
उन भले मानस को ये पता नहीं कि कानून से ऊपर कोई नहीं होता। कानून के शिकंजे में जो एक बार फंसता है उसको नानी याद आ जाती है। चाहे वो सुब्रत राय सहारा हों या फिर बाबा आसाराम। इस कानून ने इंदिरा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू तक को नहीं बख्शा। हां अगर कहीं कमी है तो फिर है उसका अनुपालन करने वाले अधिकारी में। वो मानसिक रूप से कितना मजबूत है। अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है कि छत्तीसगढ़ की ही एक आईएएस बहू दुर्गा नागपाल ने उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार के दांत खट्टे कर दिए थे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव को अपनी साख बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। ऐसे में अब उनको ये बात कौन समझाए।
निगम अगर अपने नियम कायदे दुरुस्त कर ले तो एक तो उसकी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी। इसके अलावा ऐसे लोगों को भी सबक मिल जाएगा कि कानून से ऊपर कोई नहीं होता। अब देखना ये होगा कि निगम ऐसे मामलों पर क्या कार्रवाई करता है? महापौर को चाहिए कि ऐसे मामलों को प्रमुखता से संज्ञान में लेकर इन पर प्रभावी कार्रवाई करें, ताकि ऐसे लोगों को सबक सिखाया जा सके, जो खुद को कानून से ऊपर मानते हैं।
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