गुरू जी की बीमारी का रहस्य

कटाक्ष-

निखट्टू
बुरा हो राज्य के शिक्षा विभाग के अफसरों का जिन्होंने कई-कई दशकों से शालाओं में जमे बैठे अध्यापकों का तबादला कर दिया। अब ऐसे में गुरुओं की तबियत बिगडऩी शुरू हो गई। देखते ही देखते पूरे प्रदेश में 249 गुरुओं की तबियत खराब हो गई, वो भी कागजों में। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर ऐसे गुरू जी भला बच्चों को क्या शिक्षा देंगे? इनके जीवन से आने वाली पीढ़ी क्या शिक्षा लेगी? अध्यापक के आचार -विचार का भी बच्चों के जीवन पर खासा असर देखने को मिलता है।
भारत एक आदर्शवादी भूमि है, यहां हम किसी को आदर्श मानते हैं और उसी के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने की पूरी कोशिश करते हैं। अब ऐसे गुरू जी के चेले भला भविष्य में क्या कर पाएंगे?
दरअसल तबियत उन्हीं लोगों की बिगड़ी है जो, स्कूल तो नाम मात्र के जाया करते थे। स्कूल में हाजिरी लगाकर अपने घर का काम करने वाले अध्यापकों की ये सारी कारस्तानी लगती है। ये पढ़ाने को छोड़कर बाकी का हर काम जानते हैं। घर से दूर तबादला हो जाने पर इनको घर से आना-जाना करना होगा। इसके अलावा वहां काम भी करना पड़ेगा, जो इन लोगों ने कभी किया ही नहीं। ऐसे में भला अब तबियत न खराब हो तो क्या खराब हो?
एक ने तो बड़ी बेशर्मीं से साढ़े तीन  इंच मुस्करा कर जवाब दिया। अरे साहब जब जिंदगी पर बन आई हो तो तबियत बिगाड़ लेने में कोई बुराई नहीं है। सर्व नाशे समुत्पन्ने अर्ध त्याजति पंडित:। अर्थात जब पूरी चीज नष्ट होने जा रही हो तो विद्वान व्यक्ति आधा ही बचाने की चेष्टा करता है। ऐसे में जब नौकरी पर बन आई हो तो बीमारी का आवेदन लगा कर ही मुक्ति पा लेना ही श्रेयष्कर है। अब जहां इतने सदाचारी अध्यापक हों तो वहां के बच्चे कितने संस्कारवान होंगे , इसको आसानी से समझा जा सकता है। अब जब तक इस तथाकथित इस बीमारी से गुरुओं को निजात न मिल जाए । बच्चों को इन्हीं पुराने गुरुओं द्वारा शिक्षा देना न शुरू हो  तब तक के लिए जय...जय।
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