दो सौ की दिहाड़ी में कैसे चढ़ेगी हांड़ी






आखिर और कितना उड़ेगा मजदूरों की मजदूरी और मजबूरी का मजाक

 जनता की सेवा के नाम पर भरपेट मेवा खाने वाले सरकारी अधिकारी और लायक विधायक का बढ़ता वेतन, और दिनोंदिन मजदूर का नंगा होता जा रहा बदन। सरकारी नीतियों और उसके मंसूबों को बताने के लिए काफी है। जिस देश में लोक की सेवा के लिए गठित तंत्र कोट पैंट और टाई पहने वातानुकूलित कार में घूम रहा है, तो वहीं लोक यानि कि किसान और मजदूरों के शरीर से लगातार कपड़े कम होते जा रहे हैं। सेवा के लिए बना तंत्र अब लोक की कमाई से हर महीने कमा कर कई लाख, उसी को दिखा रहा है आंख। ऐसे में सवाल तो यही है कि आखिर दो सौ रुपए कि दिहाड़ी में कैसे चढ़ेगी श्रमिक के रसाई में हांड़ी? मजदूरों की मजदूरी और मजबूरी का आखिर और कितना फायदा उठाएगी ये सरकार? विधायक और अधिकारियों को तो बढ़ा हुआ वेतन चुपचाप उनके खाते में चला जाता है मगर एक मजदूर और किसान के हिस्से में क्या आता है?



0 जिनके नाम पर होती है रैलियां उन्हें नहीं पता दिवस विशेष के बारे में, कमाया-खाया और घर गए


रायपुर/ रायगढ़/ कांकेर/ कवर्धा। 
आप भी जाने मई दिवस के मायने-
 लो फिर एक मई आ गई, अरे वही मजदूर दिवस। साल भर चंदे के धंधे में लीन रहने वाली मजदूर यूनियनों की भड़ास निकालने का दिन। मजदूरों को सुनहरे ख्वाब दिखाने का दिन, व्यवस्था को खरीखोटी सुनाने का दिन और अपनी साल भर की रोटी कमाने का दिन। और असलियत यही है कि मजदूर को इन सब चीजों से कोई सरोकार नहीं है। वो तो अगर पूरे दिन पसीना नहीं बहाएगा तो उसकी रसोई में भोजन नहीं बन पाएगा। 
 मई दिवस को लेकर जितनी सरगर्मी दूसरों में दिखती है उतनी मजदूरों में नहीं है। वह तो यह भी नहीं जानते कि मई दिवस किसे कहते हैं। न तो आयोजन में वह हिस्सा लेते हैं और न ही बुलाया जाता है। जैसे दूसरे दिन उनके लिए होते हैं वैसे ही यह दिन भी। हालांकि सरकारी दफ्तरों में मई दिवस पर छुट्टी होती है पर मजदूरों को छुट्टी कहां मयस्सर है?
नइं जानव का होथे मजदूर दिवस गा-
कन्धे पर धामा लिए भागे जा रहे टिकरापारा निवासी ठंडाराम साहू से मैंने यूं ही कुतूहलवश पूछ लिया। भाई आज तो तुमन के मजदूर दिवस हे.... ठंडाराम भौचक्का खड़ा रह गया। फिर अचानक संभल कर बोला... ये मजदूर दिवस का होथे गा... मैं नइं जानव। ये दिवस...टिवस नइं जानव मैंहा.... और भाग खड़ा हुआ। 

पता नहीं यह कौन सा दिवस है। कभी बताया नहीं गया। कोई आयोजन आज तक नहीं हुआ। आज का पता नहीं। अभी तक किसी ने बताया नहीं कि आज क्या दिवस है।

सत्यप्रकाश, मजदूर

हम तो यहां मजदूर हैं कुछ काम होता है तो गुड्डू भैया को बताते हैं, जो हम लोगों के अध्यक्ष हैं। वहीं काम करवा देते हैं।

राजू, मजदूर

हमारा पंजीयन कार्ड नहीं बना है। जब भी लेबर ऑफिस जाते हैं तो बताया जाता है कि अभी लेट होगा। पता नहीं कब तक बनेगा। यहां संगठन तो है पर अभी तक कोई आयोजन नहीं हुआ है।

मोहन, मजदूर

हम पिछले 11 साल से काम कर रहे हैं, पर हमें तो नहीं पता कि कोई दिवस मनाया जाता है। समस्या का हल यहां के लोग कई बार कर देते हैं। हमारी समस्या ज्यादा बड़ी नहीं होती।

प्रयाग, मजदूर

मैं तो एमपी से यहां मजदूरी करने आया हूं। यहां की बाकी चीजों से हमें मतलब नहीं है। बस कोई मिल जाता है तो उसके घर काम करने चला जाता हूं और खा पीकर कहीं सो जाता हूं, चाहे कोई भी दिवस हो।

प्रकाश, मजदूर


ठेकेदारों को मिली लूट की खुली छूट-
मजदूरों की मजदूरी में भी शोषण की पराकाष्ठा पार कर चुकी है। इस महंगाई के जमाने में जहां विधायकों का वेतन एक लाख दस हजार रुपए और अधिकारियों को सरकार सातवां वेतनमान देने जा रही है। उसी देश में मजदूरों को यहां डेढ़ सौ से दो सौ रुपए तक की भी मजदूरी मयस्सर नहीं होती। कहीं दलाल तो कहीं ठेकेदार मजदूरों की कमाई पर जुगाली कर रहे होते हैं। शासन -प्रशासन चुपचाप तमाशबीन बना बैठा है। 
बॉक्स-
श्रमिकों के बदले जेसीबी से कराया काम
चिल्फीघाटी के ग्राम पंचायत बाहनाखोदरा के आश्रित ग्राम प्रभुटोला के जंगल में विभाग खुद ठेकेदार बनकर 10 लाख की लागत से तालाब का निर्माण जेसीबी मशीनों से कराया गया। जिस पर विभाग के ऊपर ऊंगली उठने लगी है। वन विभाग कार्य एजेंसी बनकर जेसीबी मशीनों से तालाब का निर्माण किया जा रहा।
बॉक्स-
नहीं रुक रहा मजदूरों का पलायन-
सरकारी अधिकारी अपनी सफलताओं के कितने ही नगाड़े पीट लें मगर आलम ये है कि प्रदेश से बड़ी तादाद में मजदूरों का पलायन दूसरे राज्यों में हुआ है। इसमें कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्य शामिल हैं। आए दिन यहां से बंधुआ मजदूरों के छुड़ाए जाने की खबरें आती ही रहती हैं। 
बॉक्स-

दो साल से नहीं मिली मनरेगा की मजदूरी 
अंतागढ़ के कोयलीबेड़ा में 2014-15 और 2015-16 में किए गये कार्य का मजदूरी भुगतान आज तक नहीं हो पाया है। 
मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2014-15 में नरेन्द्र निषाद, मन्नूराम निषाद, रामनंदन पटेल, गन्नूराम निषाद, धनराज लावत्रे, रमेश कौशल, जोहन धनेलिया, शोभीराम आदि के खेतों में भूमि समतलीकरण का कार्य ग्राम पंचायत कोयलीबेड़ा द्वारा कार्य करवाया गया था। इसमें अनिता 23, कांति बाई 26, बिंदा बाई 33, उर्मिला 35, मिथुन 30, नाथुराम 15, भवन 20, पंडित 24, श्यामलाल 41, सुबिर 30, रमो पटेल 10 दिन सहित अन्य बहुत से मजदूरों ने कार्य किया था। इन सभी का मजदूरी भुगतान लंबित है। इसी तरह 2015-16 का हरि निषाद, रामनंदन पटेल एवं अन्य किसानों का समतलीकरण कार्य करवाया गया है, जिसमें गौरी 9, सुनिल 40, दुलसा 41, सुरज 40, मेहतरीन 20, दिलीप 25, दामेश्वरी 30, श्यामलाल 45, सहोदरा 45, कान्तीबाई 30, परमीला पटेल 15 दिन एवं अन्य मजदूरों ने कार्य किया था। इनका भी मजदूरी भुगतान लंबित है।

---------------------------------------------------------------------------



Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव