झीरम के बहाने चले एकता दिखाने


ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,  मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा  हुआ होगा ।


झीरम घाटी में 25 मई को हुए नृशंस हत्याकांड की तीसरी वर्षी पर कांग्रेस एक बार फिर से एकजुटता का प्रदर्शन करने जा रही है। दिल्ली से प्रदेश प्रभारी वीके हरिप्रसाद को भी बुलाने की तैयारी है। लगातार जनाधार खोती और आपसी लड़ाई में पूरी तरह उलझी कांग्रेस एक बार फिर से आपसी एका का दिखावा करने जा रही है। अपनी इसी भीतरी लड़ाई के कारण कांग्रस की रही -सही साख भी लगभग समाप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। सियासी गलियारों के जानकारों का मानना है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के मायने भी अब भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव हो गए हैं। नकल तो अच्छी है मगर अकल लगाकर नहीं की गई। इनकी कोशिश ठीक उसी तरह की है जैसे केंद्र में भाजपा माने अमित शाह और नरेंद्र मोदी। ऐसे में नकल तो कर लिया मगर अकल कहां से लाएंगे?
 भाजपा में भी भीतरी तौर पर सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। पिछले दिनों पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने जिस तरह का जनादेश दिया उससे दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों को अपने कार्यों और उसकी शैली पर गहन -मंथन करने की जरूरत है। भाजपा का जनाधार जहां बढ़ा है तो वहीं कांग्रेस का जनाधार कम हुआ है। तो वहीं क्षेत्रीय छत्रपों को भी जनता ने जमकर बहुमत दिया।
25 मई इतिहास का वो काला दिन जिस दिन झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के काफिले पर गोलियों की बौछार कर दी। इसमें  29 लोग मारे गए थे। प्रदेश कांग्रेस का तो शीर्ष नेतृत्व ही एक तरह से समाप्त सा हो गया। अब अगर देखा जाए तो उस पीढ़ी के कद्दावर नेताओं में अजीत जोगी को छोड़कर कोई नहीं बचा। जोगी भी इस लिए बच गए क्योंकि वो वहां से चौपर से वापस रायपुर आ गए थे। प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष भूपेश बघेल जब से प्रदेश अध्यक्ष बने हैं। उनकी सिर्फ और सिर्फ एक ही कोशिश है कि कितनी जल्दी अजीत जोगी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाए। उनकी इस कोशिश में वे कितने कामयाब हुए ये तो भविष्य बताएगा, मगर उनकी इस कोशिश में पार्टी का जनाधार जरूर घटता जा रहा है। मुद्दों के पहाड़ पर बैठी पार्टी आपसी तू-तू-मैं-मैं में लगी पड़ी है।
ऐसे में झीरम घाटी के शहीदों को श्रध्दांजलि देने के बहाने ही अगर आपसी एका कायम करने में कामयाब हो जाएं, तो इससे बेहतर बात और क्या हो सकती है? मगर इसके दूर-दूर तक कोई आसार नज़र नहीं आते। प्रदेश कांग्रेस को चाहिए कि वो आपसी वैमनस्य भुलाकर पूरी एकजुटता के साथ राज्य की सत्ताधारी पार्टी पर हमलावर हों। जब तक सत्ताधारी पार्टी पर सियासी हमले तेज नहीं होंगे, लोगों का खोया विश्वास वापस नहीं आने वाला। यदि इस मौके पर कांग्रेस एकजुट होने का कारनामा कर दिखाती है तो इससे बड़ी और कोई श्रध्दांजलि उन शहीदों के लिए कुछ हो ही नहीं सकती। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उनके सहयोगी उस दिन कुछ ऐसा ही सियासी चमत्कार दिखाएं । जिससे राज्य की जनता का कांग्रेस से उठ रहा विश्वास वापस लौट आए।

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