श्रीमान की खींचतान
कटाक्ष-
निखट्टू
प्रदेश आजकल एक अजीब संकट से गुजर रहा है, वो है श्रीमान की खींचतान। मामला बड़ा है दोनों दलों के पीछे उनका पूरा कुनबा खड़ा है। और आप तो जानते ही हैं कि दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय, वाली तर्ज पर जनता पिस रही है। दोनों ही ओर से एक दूसरे को गलत ठहराने और अपनी हनक दिखाने की कोशिशें जारी हैं। एक को जनता ने चुनकर भेजा है तो दूसरे को सरकार ने नियुक्त किया है। दोनों ही ताकतवर हैं। कुछ जानकारों का तो ये भी मानना है कि प्रदेश का सारा कामकाज चलाने वाली प्रशासनिक मशीनरी भीतरी तौर पर कमर कस चुकी है। उनका एक सूत्रीय अभियान है कि पहले छेड़ेंगे नहीं, और जो छेड़ेगा उसे छोड़ेंगे नहीं। इसका असर भी साफ-साफ दिखाई देने लगा है। इससे दु:खी होकर कुछ लोग कुनमुना तो कुछ भुनभुना रहे हैं। कुछ और भी हैं जो मीडिया के माइक के सामने बांग देते नजर आ रहे हैं। अब श्रीमानों की इस हाथापाई में बेचारे गरीब कुचले जा रहे हैं। ऐसे में प्रदेश का तो कल्याण होने से रहा। दुखिया को दुलारने भीषण गर्मी पेड़ के नीचे चौपाल लगाए मुखिया भी इन्हीं की सुनते हैं। कोई भी समस्या होने पर इन्हीं से सलाह-मश्वरा लेते हैं। ऐसे समय में हमें महाकवि भूषण याद आ रहे हैं जिन्होंने कभी लिखा था कि -सिंह की सिंह चपेट सहैं, गजराज सहैं गजराज को धक्का। मगर यहां तो उल्टा हो रहा है। सिंह और गजराज की जंग में जनता बेचारी पिसती जा रही है। ऐसे में समझ सकें तो समझ लीजिए कि बात किसकी कर रहे हैं।अपनी तो आदत है भइया नाम किसी का नहीं लेते। आप लगाइए अनुमान कि कौन हैं दोनों श्रीमान। और हम भी लेते हैं घर का रास्ता, क्योंकि ठंडा होने जा रहा है नाश्ता..... आप मत कीजिएगा चिंता और हम नहीं करते किसी का भय ....तो कल तक के लिए जय..जय।
निखट्टू
प्रदेश आजकल एक अजीब संकट से गुजर रहा है, वो है श्रीमान की खींचतान। मामला बड़ा है दोनों दलों के पीछे उनका पूरा कुनबा खड़ा है। और आप तो जानते ही हैं कि दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय, वाली तर्ज पर जनता पिस रही है। दोनों ही ओर से एक दूसरे को गलत ठहराने और अपनी हनक दिखाने की कोशिशें जारी हैं। एक को जनता ने चुनकर भेजा है तो दूसरे को सरकार ने नियुक्त किया है। दोनों ही ताकतवर हैं। कुछ जानकारों का तो ये भी मानना है कि प्रदेश का सारा कामकाज चलाने वाली प्रशासनिक मशीनरी भीतरी तौर पर कमर कस चुकी है। उनका एक सूत्रीय अभियान है कि पहले छेड़ेंगे नहीं, और जो छेड़ेगा उसे छोड़ेंगे नहीं। इसका असर भी साफ-साफ दिखाई देने लगा है। इससे दु:खी होकर कुछ लोग कुनमुना तो कुछ भुनभुना रहे हैं। कुछ और भी हैं जो मीडिया के माइक के सामने बांग देते नजर आ रहे हैं। अब श्रीमानों की इस हाथापाई में बेचारे गरीब कुचले जा रहे हैं। ऐसे में प्रदेश का तो कल्याण होने से रहा। दुखिया को दुलारने भीषण गर्मी पेड़ के नीचे चौपाल लगाए मुखिया भी इन्हीं की सुनते हैं। कोई भी समस्या होने पर इन्हीं से सलाह-मश्वरा लेते हैं। ऐसे समय में हमें महाकवि भूषण याद आ रहे हैं जिन्होंने कभी लिखा था कि -सिंह की सिंह चपेट सहैं, गजराज सहैं गजराज को धक्का। मगर यहां तो उल्टा हो रहा है। सिंह और गजराज की जंग में जनता बेचारी पिसती जा रही है। ऐसे में समझ सकें तो समझ लीजिए कि बात किसकी कर रहे हैं।अपनी तो आदत है भइया नाम किसी का नहीं लेते। आप लगाइए अनुमान कि कौन हैं दोनों श्रीमान। और हम भी लेते हैं घर का रास्ता, क्योंकि ठंडा होने जा रहा है नाश्ता..... आप मत कीजिएगा चिंता और हम नहीं करते किसी का भय ....तो कल तक के लिए जय..जय।
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