परिवर्तन की शर्त ईमानदारी
रख दी है किसी शख़्स ने दहलीज़ पे आंखें, रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता।
भीषण गर्मीं में एक ओर राजधानी का पारा ऊपर की ओर चढ़ता जा रहा है और पानी पाताल में नीचे उतरता जा रहा है। ऐसे में लोगों के सामने पेयजल की किल्लत होती जा रही है। गरीब जनता को मूलभूत सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए जिम्मेदार नगर निगम कुछ भी करने को तैयार नहीं। ऐसे में सवाल तो यही है कि गरीबों की प्यास से इतना बड़ा मजाक क्यों किया जा रहा है? कहीं मोटर साइकिल से पानी ढोया जा रहा है, तो कहीं एक ही टैंकर एक दिन में 30 ट्रिप लगा रहा है। यानि कुछ भी सोचने से पहले ये नोंचने पर आमादा हंै। जो जहां से पा रहा है सरकारी खजाने को चूसने में लगा है,बस बहाना मिलना चाहिए। वैसे भी राजधानी के नगरीय निकाय प्रशासन के काम काज को लेकर पहले भी सवालिया निशान लगते रहे हैं। इन्हीं लोगों की कृपा का नतीजा है कि रायपुर आज दुनिया के गंदे शहरों की सूची में पांचवें नंबर पर है। हल्की सी भी हवा अगर चलती है तो प्लास्टिक की थैलियां आसमान पर पक्षियों के झुंड की तरह छा जाती हैं। नगर का कोई भी गली मोहल्ला ऐसा नहीं है जहां गंदगी का अंबार न लगा हो। ऐसे में जनता के टैक्स से रिलैक्स करने वालों को कम से कम इतनी तो गैरत होनी चाहिए कि वे किसके पैसों पर ऐश कर रहे हैं। इसके बदले में उस जनता को क्या लौटा रहे हैं?
वार्ड के पार्षदों का ये नैतिक दायित्व बनता है कि वो कम से कम उस जनता की सुविधाओं का ख्याल रखें जिसने उनको इसी काम के लिए चुना है। जिस दिन भी इन लोगों को अपनी जिम्मेदारी का बोध हो जाएगा। नि:संदेह हमारी दशा सुधरने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी होगा हमारा कर्तव्य बोध। जब तक हमको इस बात का बोध न हो कि ये हमारी जिम्मेदारी है। इसको हमें अपने समाज और देश के लिए करना है। तब तक ऐसा होना कतई मुमकिन नहीं है।
देश को स्वच्छ और आदर्श बनाने की शुरुआत एक घर से होनी चाहिए। क्योंकि यही अच्छाई घर से गांव, वहां से जिले और फिर प्रदेशों से होती हुई पूरे देश में फैल जाएगी। हमारी पूरी कोशिश होनी चाहिए कि हम सबसे पहले एक जिम्मेदार और ईमानदार नागरिक बनें, क्योंकि परिवर्तन की दो ही शर्तें हैं जिम्मेदारी और ईमानदारी। हम अपने दायित्वों को समझें और उनका भलीभांति निर्वहन करें। इससे न सिर्फ हमारा समाज बल्कि देश भी मजबूत बनेगा इसमें कोई दो राय नहीं है।
भीषण गर्मीं में एक ओर राजधानी का पारा ऊपर की ओर चढ़ता जा रहा है और पानी पाताल में नीचे उतरता जा रहा है। ऐसे में लोगों के सामने पेयजल की किल्लत होती जा रही है। गरीब जनता को मूलभूत सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए जिम्मेदार नगर निगम कुछ भी करने को तैयार नहीं। ऐसे में सवाल तो यही है कि गरीबों की प्यास से इतना बड़ा मजाक क्यों किया जा रहा है? कहीं मोटर साइकिल से पानी ढोया जा रहा है, तो कहीं एक ही टैंकर एक दिन में 30 ट्रिप लगा रहा है। यानि कुछ भी सोचने से पहले ये नोंचने पर आमादा हंै। जो जहां से पा रहा है सरकारी खजाने को चूसने में लगा है,बस बहाना मिलना चाहिए। वैसे भी राजधानी के नगरीय निकाय प्रशासन के काम काज को लेकर पहले भी सवालिया निशान लगते रहे हैं। इन्हीं लोगों की कृपा का नतीजा है कि रायपुर आज दुनिया के गंदे शहरों की सूची में पांचवें नंबर पर है। हल्की सी भी हवा अगर चलती है तो प्लास्टिक की थैलियां आसमान पर पक्षियों के झुंड की तरह छा जाती हैं। नगर का कोई भी गली मोहल्ला ऐसा नहीं है जहां गंदगी का अंबार न लगा हो। ऐसे में जनता के टैक्स से रिलैक्स करने वालों को कम से कम इतनी तो गैरत होनी चाहिए कि वे किसके पैसों पर ऐश कर रहे हैं। इसके बदले में उस जनता को क्या लौटा रहे हैं?
वार्ड के पार्षदों का ये नैतिक दायित्व बनता है कि वो कम से कम उस जनता की सुविधाओं का ख्याल रखें जिसने उनको इसी काम के लिए चुना है। जिस दिन भी इन लोगों को अपनी जिम्मेदारी का बोध हो जाएगा। नि:संदेह हमारी दशा सुधरने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी होगा हमारा कर्तव्य बोध। जब तक हमको इस बात का बोध न हो कि ये हमारी जिम्मेदारी है। इसको हमें अपने समाज और देश के लिए करना है। तब तक ऐसा होना कतई मुमकिन नहीं है।
देश को स्वच्छ और आदर्श बनाने की शुरुआत एक घर से होनी चाहिए। क्योंकि यही अच्छाई घर से गांव, वहां से जिले और फिर प्रदेशों से होती हुई पूरे देश में फैल जाएगी। हमारी पूरी कोशिश होनी चाहिए कि हम सबसे पहले एक जिम्मेदार और ईमानदार नागरिक बनें, क्योंकि परिवर्तन की दो ही शर्तें हैं जिम्मेदारी और ईमानदारी। हम अपने दायित्वों को समझें और उनका भलीभांति निर्वहन करें। इससे न सिर्फ हमारा समाज बल्कि देश भी मजबूत बनेगा इसमें कोई दो राय नहीं है।
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