पाड़ा पुराण और परेशानियां




निखट्टू

संतो.... कथा कुछ इस प्रकार है कि एक कुश की रस्सी बटने वाले अंधे ने एक भैंस पाल रखी थी। उसके एक पाड़ा था। अंधा इस पाड़े को बहुत प्यार करता था। लिहाजा अपनी ही चारपाई के पास बांधकर रखता था। एक दिन अंधा ढेर सारा कुश लाया और ये सोच कर रस्सी बटने बैठ गया कि इसी रस्सी से अपने घर की तीन चारपाइयों को बुनेगा। अति उत्साह में वो भूल गया कि चारपाई के नीचे ही पाड़ा भी बंधा हुआ है। अब कई घंटे तक उसके रस्सी बटने का परिणाम क्या निकला ये तो आपको आसानी से समझ में आ ही गया होगा। नहीं समझ पाए... अरे भइया सारी रस्सी पाड़ा जी चबा गए।
प्रदेश की सियासत में भी आजकल ऐसा ही हो रहा है। यहां भी कोई अपनी सियासी चारपाइयां बुनने के लिए रस्सियां बुनने में लगा है। और कुछ पाड़ा जी जहां-तहां जु$गाली करने में लगे हैं।
यही कारण है कि परेशानियां प्रदेश का पीछा नहीं छोड़ रही हैं। अब इसी बात को ज्योतिषी  ग्रह नक्षत्रों से जोड़ कर देख रहे हैं। सियासी विश्वलेषक अपने-अपने तरीके से देख रहे हैं। अब बंदा ठहरा चरवाहा तो उसके देखने का नजरिया भी तो वैसा ही होगा न? वैसे भी इन पाड़ो को पालने का कारण मुझे समझ में बिल्कुल भी नहीं आ रहा है। उस अंधे का पाड़ा तो सिर्फ घास खोर था घुसखोर नहीं। यहां वाले तो घुसखोर भी हैं। ऐसे पाडो को पालने से सिवाय नुकसान के फायदा तो होने से रहा। अलबत्ता परेशानियां जरूर बढ़ती रहेंगी, इसमें कोई दो राय नहीं है। अथ श्री पाड़ा पुराणे बस्तर खंडे, ऑन मंडे नपा अध्यक्ष का भय। बाकी कथा फिर कभी सुनाऊंगा... अब देर हो रही है घर जाऊंगा...कल तक के लिए जय..जय।
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