- अफसरों ने जलाई आदिवासियों की 10 झोपडिय़ां


 भ्रष्ट और बेलगाम अफसरशाही अब संवेदनाहीन भी हो चुकी है। मंगलवार को धमतरी वन विभाग के अफसरों ने नगरी वन परिक्षेत्र के कुसुमभर्री और बटनहर्रा इलाके में 10 आदिवासियों की झोपडिय़ों को आग लगाकर जला दिया। हल्की बारिश के बीच पहले तो वन विभाग के अमले ने आदिवासियों को उनकी झोपडिय़ों से घसीट-घसीट कर बाहर निकाला।  इसके बाद उनकी झोपडिय़ों को आग लगा दी। अब रसूखदार अधिकारी इसको अतिक्रमण हटाने  की प्रक्रिया बता रहे हैं। ऐसे में सवाल तो ये उठता है कि क्या ऐसे अतिक्रमण हटाया जाता है? इन बेलगाम अफसरों की हिटलरशाही के चलते दो दर्जन से ज्यादा लोग घर विहीन हो गए हैं। विभाग मामले की लीपापोती में पूरी ताकत के साथ जुट गया है।

डिप्टी रेंजर ने दी मीडिया को खबर नहीं छापने की नसीहत
रायपुर। अतिक्रमण हटाने के नाम पर मंगलवार की शाम को वन परिक्षेत्र नगरी के कुसुमभर्री और बटनहर्रा इलाके में वन विभाग के अमले ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर आदिवासियों की 10 झोपडिय़ों को आग लगा दिया। इन सभी झोपडिय़ों में गरीब आदिवासियों के परिवार निवास कर रहे थे। इनका कहना है कि इन्होंने वन अधिकार पट्टे के लिए आवेदन दे रखा है,मगर अधिकारी इनको वर्षों से पट्टी पढ़ाते आ रहे हैं। तो वहीं वन विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने अपनी धमक दिखाने के लिए दो दर्जन से ज्यादा लोगों को इस बारिश के मौसम में न सिर्फ घर से बेघर कर दिया बल्कि उनके आशियाने जलाकर राख कर डाला। अब ऐसे में सवाल तो ये है कि आखिर ये गरीब अब जाएं तो कहां जाएं?

क्या है पूरा मामला-
 मंगलवार शाम गरी वन परिक्षेत्र के कुसुमभर्री और बटनहर्रा में वन विभाग का अमला अचानक जंगल के अतिक्रमण प्रभावित क्षेत्र में पहुंचा। उस वक्त बारिश हो रही थी। फिर भी वहां 10 झोपडिय़ों में रह रहे करीब दो दर्जन लोगों को उनकी झोपडिय़ों से जबरन खींच-खीचकर बाहर निकला गया। लोग जैसे ही बाहर निकले, झोपडिय़ों में आग लगा दी गई। कुछ ही देर में आदिवासियों के आशियाने जलकर स्वाहा हो गया।
लीपापोती में जुटा पूरा विभाग-
झोपडिय़ों को सरेआम जलाने के बाद वन विभाग के रसूखदार अधिकारी अब मामले को रफादफा करने की लगातार कोशिश में लगे हैं।  एसडीओ धमशील ने तो जानबूझकर आग लगाए जाने से साफ इनकार किया है। उनका कहना है कि पत्तां को जलाने के लिए आग लगाई गई होगी और वही आग भड़क कर झोपडिय़ों में लग गई होगी।
मत छापिए समाचार: डिप्टी रेंजर-
बिरगुड़ी वन परिक्षेत्र के डिप्टी रेंजर लक्ष्मण राव परहाड़े ने तो हमारी सरकार के संवाददाता को ही समाचार न प्रकाशित करने की नसीहत दे डाली। उनका कहना है कि इसमें कोई दम नहीं है। इन लोगों ने वन भूमि पर अतिक्रमण कर रखा था। लिहाजा सिर्फ अतिक्रमण हटाया गया है। वन अधिकार पट्टे की बात करते ही उन्होंने तत्काल फोन काट दिया।
हमारी सरकार के पास है घटना का वीडियो-
इस पूरी घटना का वीडियो हमारी सरकार के पास मौजूद है। इसको देखकर किसी का भी खून खौलना लाजि़मी है। सवाल उठता है कि आखिर क्या सरकार अधिकारी इतने बेलगाम हो गए हैं? क्या कोई कानून किसी अधिकारी को किसी गरीब का आशियाना जलाने की इज़ाजत देता है?
मामले पर अफसरों के तर्क-
 डीएफओ ने कहा- ठझोपडिय़ां वनभूमि पर बनी थीं, जो जंगल की जमीन पर अतिक्रमण है। वे मनमानी करते रहते हैं, इसलिए उन्हें हटाया गया।
 एसडीओ धर्मशील का कहना है- उच्चाधिकारियों के आदेश पर कार्रवाई की गई है। जंगल में किसी को अतिक्रमण नहीं करने दिया जाएगा।
वन अधिकार पट्टे के नाम पर अफसरों ने कटवाए चक्कर-
लोक सुराज अभियान के दौरान बड़ी -बड़ी बातें करने वाले प्रदेश के मुखिया और उनके कैबिनेट के कुनबे के रसूखदारों की असलियत इसके बाद खुद-ब-खुद सामने आ गई है। आदिवासियों को वन अधिकार पट्टे बांटने का दावा यहां साफ-साफ हवा होता दिखाई दे रहा है।
डर से बोलने को तैयार नहीं हैं आदिवासी-
इन गरीबों के जेहन में घटना के बाद से इतना भय बैठ गया है कि कोई मीडिया से बात करने को तैयार नहीं है। जैसे ही कोई उनसे कुछ पूछता है तो चुपचाप ये लोग वहां से हट जाते हैं।
नहीं मिला वन अधिकार पट्टा-
बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं पर काबू पाने की कोशिश करते भाऊराम ने बतया कि हमें आज तक वन अधिकार पट्टा नहीं मिला है। इसके लिए जिस सरकारी अधिकारी के पास भी जाते हैं दुत्कार कर भगा देता है। गरीबी रेखा का राशनकार्ड क्या होता है, भाऊराम नहीं जानता। उसने सीधा सा सवाल किया कि हमारा कसूर क्या है? हमारे बच्चे इस घने जंगल में बारिश के मौसम  में कहां रहेंगे? हमें सामान भी निकालने का मौका नहीं दिया गया। सब कुछ जल कर स्वाहा हो गया। इसके साथ ही छलक उठीं भाऊराम की आंखें।

इलेक्ट्रॉनिक चैनल के संवाददाता से भिड़ा रेंजर-
राजधानी के एक बड़े इलेक्ट्रानिक चैनल के संवाददाता से कुसुमभर्री का रेंजर भिड़ गया। उसका कहना था कि आपने हमारी खबर क्यों दिखाई? इस अधिकारी की हिटलरशाही देखकर वहां मौजूद दूसरे लोग भी दंग रह गए। सवाल तो ये भी है कि क्या धमतरी के वन विभाग की टीम का रुतबा इतना बढ़ गया कि उनको मीडिया की स्वतंत्रता पर भी हमला करने का अधिकार मिल गया?
मुख्यमंत्री के आदेश की उड़ाई गईं धज्जियां-
नगरी वन परिक्षेत्र के इस रेंजर के इस कारनामें ने प्रदेश के मुख्यमंत्री के उस आदेश की धज्जियां उड़ाकर रख दीं, जिसमें उन्होंने कहा था कि चौथा स्तंभ अपना काम प्रदेश में बेरोकटोक करेगा। पत्रकारों को समाचार संकलन से नहीं रोका जाएगा। उनके मामलों की जांच के लिए एक टीम का गठन किया जाएगा।
बॉक्स-
वन मंत्री के ठेंगे पर सीएम का आदेश-
बारनवापारा में हुए चिंतन शिविर के दौरान मुख्यमंत्री ने भाजपा के सांसदों-विधायकों और मंत्रियों से व्यवहार में परिवर्तन लाने का आदेश दिया था। नगरी में आदिवासियों की झोपडिय़ां जलाने के मामले में जब हमारी सरकार की टीम ने वन मंत्री महेश गागड़ा के मोबाइल नं 9425597871 पर संपर्क किया तो फोन लगातार स्विच ऑफ आया। तो वहीं वन विभाग की संसदीय सचिव चंपा देवी पावले के मोबाइल नं.-9907496447 पर लगातार घंटियां जाती रहीं मगर उन्होंने फोन नहीं उठाया। ऐसे में मुख्यमंत्री के आदेश का भला इन लोगों पर क्या असर हुआ अपने आप समझ में आ जाता है। सवाल तो ये है कि जब इनका जनता से कोई सरोकार ही नहीं  है तो ऐसे लोगों को सुविधाएं और मोटा वेतनमान देकर खजाने को क्यों चूना लगाया जा रहा है?

वर्जन
 बेजा कब्जा करने वालों को पहले सूचना दी गई थी, इसके बावजूद उन्होंने झोपडिय़ां नहीं हटाईं तब कार्रवाई की गई।
विवेक आचार्य
डीएफओ
धमतरी








Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव