झल्लन राम का रमझल्ला

कटाक्ष-

निखट्टू
गांव के एक अनपढ़ झल्लन राम जब पहली बार ससुराल जाने लगे तो उसके घर वालों ने समझाया। पहली बार ससुराल जा रहे हो, वहां लोगों से कायदे से बात करना। बिछौने को बिस्तर कहना, पानी को जल और खटिया को चारपाई कहना। युवक समझदार था उसने रट लिया। इसके बाद जैसे ही ससुराल पहुंचा और सास को प्रणाम किया, तो उसकी साली पानी लेकर आई। सास बिछौना -बिछाने लग गई तो उसने कहा मां जी आप बिस्तर अभी क्यों लगा रही हैं। सुनते ही साली ने अपनी बहन यानि उसकी पत्नी को जाकर बताया कि जीजी जी तो पढ़े लिखे मालूम होते हैं। जलपान के बाद सास ने पान का बीड़ा दामाद की ओर बढ़ाया तो झल्लन ने बिना झल्लाए जवाब दिया कि मां जी मैं ताम्बूल का सेवन नहीं करता। हमारे जितने भी भाई हैं कोई नशा नहीं करता। ये सुनकर सास फूली नहीं समाई, भगवान का शुक्रिया अदा करते हुए बोली कि ऐसा दामाद भगवान हर किसी को दे।
अब बात खाने की आई तो भीतर बुलाए गए जमाई। रसोई के बगल ही जहां वो खाना खाने बैठे थे बगल के कमरे में ही उनकी पत्नी अपनी सहेलियों के साथ बैठकर अपने पति के ज्ञान की साक्षी बनने बैठी।
सास अपने दामाद की थाली में दही डालने चली तो झल्लन ने मना कर दिया। बोले मां जी दधि गरिष्ठ होती है। इतना सुनकर दुल्हन की एक सहेली ने दूसरी से कहा कि लगता है जीजी जी कुछ ज्यादा पढ़े-लिखे हैं। हमारी फुलकलिया के तो भाग खुल गए।  अपनी प्रशंसा सुनकर झल्लन राम ने शेखी बघारते हुए कहा अभी कहां सुना है आपने? अरे जब घी को घृत कहेंगे तब पता चलेगा।
अब आप समझ गए होंगे कि झल्लन राम का शैक्षणिक ज्ञान कितना होगा। ऐसे ही ज्यादा पढ़े लिखे लोग ही तमाम विभागों की कुर्सियां तोड़ रहे हैं।  इनके आगे पीछे पढ़े-लिखे लोग दौड़ रहे हैं।  बस देखने भर की रंगीन सरकारी डिग्रियां हैं, बाकी और सारा पाटिया साफ है। इसके अलावा दूसरी काबिलियत ये है कि ये लोग तिजोरियों के रास्ते से जाए हैं। अब जो जिस रास्ते से आता है उसी रास्ते से जाता भी है। ऐसे में इनकी विदाई भी तिजोरी भरने के चक्कर में ही होती है। और मजेदार बात तो ये है कि ऐसे लोगों से लोग काम की उम्मीद लगाए बैठे हैं। भइया जिसने अपनी भर्ती करवाने के पैसे दिए हों वो बिना पैसे काम कर देगा? सवाल ही नहीं उठता। ऐसे लोग तो विरले ही होते हैं, जो ऐसा कर लेते हैं। तो अब मैं निकलता हूं ऐसे ही ईमानदार लोगों की खोज में ... तो फिर कल आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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