सरेंडर के पीछे का समीकरण
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं, हम देखने वालों की नजऱ देख रहे हैं।
कानून सिर्फ सबूत मांगता है। उसके साथ ही विडंबना ये भी है कि पुलिस जो सबूत देती है, उनको ज्यादा प्राथमिकता मिलती है। भले ही वो गलत हों? ठीक ऐसा ही कुछ बस्तर में भी देखने को मिल रहा है। यहां आदिवासियों को कभी माओवादी बताकर मार दिया जा रहा है, तो कभी माओवादियों का समर्थक बताकर आत्म समर्पण करवाया जा रहा है। इसके बाद हुई प्रेस कान्फ्रेंस में ये घोषणा की जाती है कि इसके ऊपर कितने मामले कितने थानों में लंबित थे। आज तक किसी भी पुलिस अधिकारी ने बस्तर के वांछित बड़े और ईनामी माओवादियों की कोई सूची जारी नहीं की। पुलिस इसी के पीछे सारा खेल-खेल रही है। इसके पीछे का समीकरण तो ये भी है कि जिनको वहां से माओवादी बताकर गिरफ्तार किया जाता है, वे असल में नक्सली होते ही नहीं। अब उनको जबरिया नक्सली बनाया जाता है। ये बात हर कोई जानता है कि आदिवासी सीधे-सादे लोग होते हैं। ऐसे में उनको आसानी से बरगलाया जा सकता है। पैसा और गरीबी से मुक्ति का लोभ उनको कुछ भी बनने पर मजबूर कर देता है। ये वो लोग होते हैं जिनको नक्सली क्या होते हैं ये तक पता नहीं होता। कई बार तो ऐसा भी देखने में आया है कई ऐसे बच्चों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया जो छात्र थे। उनके पीछे ये बात प्रचारित कर दी गई कि ये माओवादियों के लिए काम करते थे। सवाल तो यही उठता है कि तो फिर उनको गिरफ्तार किया जाना ज्यादा जरूरी था या एन्काउंटर? इस घटना का दर्दनाक पहलू ये है कि दोनों बच्चे खेत से आलू खोदने गए थे। ऐसा उनके परिजनों ने बताया था। मु_ी भर नक्सलियों को मारने के लिए इतनी बड़ी तादाद में फोर्स की तैनाती वो भी अत्याधुनिक असलहों के साथ करके आखिर सरकार क्या साबित करना चाहती है?
क्या सरकार की मंशा नक्सलवाद को जड़ से मिटाने की नहीं है? अगर है तो फिर आज राज्य से लेकर केंद्र तक में उसी की सरकार है, क्यों नहीं इस समस्या को समूल उखाड़ कर फेंक देती ये सरकार? कहीं इसके पीछे केंद्र से मिलने वाली सरकारी धनराशि की हानि का भय तो नहीं है? ये तमाम ऐसे सवाल हैं जो जेहन में कौंधते हैं। आज नहीं तो कल सरकार को इन सवालों का जवाब आने वाली पीढी को देना होगा।
ऐसे में बेहतर तो यही होगा कि दस गुनहगार भले छूट जाएं मगर एक बेगुनाह को सजा न मिले। इसी तर्ज पर तेज और प्रभावी कार्रवाई की जाए। इसमें शर्त यही हो कि किसी निर्दोष को न तो मारा जाए और न ही प्रताडि़त किया जाए।
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