संसदीय सचिवों की जिम्मेदारी


अखबार पांच मिनट में रद्दी, और नहीं तो हिला देता है गद्दी


संसदीय सचिवों के पद को लाभ का पद बताकर दिल्ली सरकार ने इससे तौबा कर लिया। तो अब इसकी आंच छत्तीसगढ़ में भी गर्म होती दिखाई दे रही है। एक ओर जहां कांग्रेस से अलग हुए राज्य के कद्दावर नेता अजीत जोगी के समर्थकों ने राज्यपाल से इसका विरोध किया। तो वहीं रायपुर के सांसद रमेश बैस ने भी एक बैठक में अपनी पीड़ा बयान कर दी। उनकी भी तकलीफ यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजनओं की जानकारी राज्य की जनता तक नहीं पहुंच पाती है। अब परोक्ष में ही सही मगर उन्होंने एक तीर से दो शिकार किए। ये अलग बात है कि प्रदेश के कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल उनका बचाव करने की मुद्रा में आ गए हैं। योजनाओं की जानकारी जन-जन तक पहुंचाने जिम्मेदारी संसदीय सचिवों की है। तो उसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों की होती है। प्रशासनिक अधिकारियों की शिकायत तो पहले भी सांसद बैस कर चुके हैं। हमेशा अपने बेबाक बयानों की वजह से सुर्खियों में रहने वाले सांसद बैस का ये इशारा कहीं न कहीं संसदीय सचिवों की लापरवाही की ओर ही था। विधायकों से ज्यादा वेतन लाल बत्ती वाली सरकारी गाड़ी, बंगला और तमाम भत्तों का उपभोग करने वाले ये लोग असल में जनता के लिए कितने कारगर साबित हो रहे हैं ये तो तमाम योजनाओं की होती दुर्दशा देखकर आसानी से समझा जा सकता है। यही कारण है कि आज इनका सहयोग करने को कोई तैयार नहीं दिखाई देता है। अपनी रौ में बह रहे इन संसदीय सचिवों से आज तक संभवत: ही किसी ने पूछा हो कि आपने अपने कार्यकाल में क्या किया? आराम से  सारी सुविधाएं भोग कर रिटायर्ड हो जाते हैं।
सरकार अगर वास्तव में जनता को जागरूक करना चाहती है, तो इन संसदीय सचिवों की जिम्मेदारी न सिर्फ निश्चित करे, बल्कि इनको टॉरगेट दे दिया जाए। इसके बाद अपने आप ही इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगेंगे,क्योंकि बिना जिम्मेदारी बढ़ाए सिर्फ वेतन और भत्ते बढ़ाकर ही किसी को सुधारा नहीं जा सकता है।

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