शिक्षा विभाग को अनुशासन की जरूरत



तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते, इसी लिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते।


लोक सुराज कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के सामने कई लड़के पांच का पूरा पहाड़ा नहीं पढ़ सके। राज्य की शालाओं में आठवीं के बच्चों को भी पांच तक का पहाड़ा सलीके से नहीं आता। तो वहीं प्रदेश के शिक्षा मंत्री शिक्षा में गुणवत्ता की बात करते हैं। ऐसे में प्राथमिक स्कूलों की तो बात छोड़ दीजिए, स्तनातक और स्नातकोत्तर तक के छात्र-छात्राएं ठीक से हिंदी नहीं लिख पाते हैं। ऐसे में शिक्षा में गुणवत्ता का मामला समझ से परे है। यही कारण है कि सरकारी शालाओं से लगातार छात्र-छात्राओं का मोहभंग होता जा रहा है। एक ओर बच्चे सरकारी शालाओं को छोड़ रहे हैं तो वहीं शिक्षा विभाग के आंकड़ों के घोड़े कागजों में दौड़ रहे हैं। जो मर्जी आई वही लिख मारा। किसकी हिम्मत है तो साहब के आंकड़ों को गलत ठहराने की हिम्मत दिखा पाए? तो वहीं कार्रवाई के नाम पर भी शिक्षा विभाग की गुणवत्ता उस वक्त देखने को मिली, जब शिक्षा मंत्री की साली उनकी पत्नी की जगह परीक्षा देती पकड़ी गई और फिर फुर्र हो गई। पूरे राज्य की पुलिस उसको आज तक नहीं तलाश पाई। जांच के नाम पर बनी कमेटी भी सियासत की दवाई खाकर सो गई।
अब यही मामला अगर किसी आम आदमी का होता तो सरकार और पुलिस मिलकर उसकी ऐसी बखिया उधेड़ते कि उसका जीना मुहाल हो जाता। अब मामला आखिर राज्य के शिक्षामंत्री का जो ठहरा। उसके बाद भी विवादों ने शिक्षा मंत्री का पीछा  नहीं छोड़ा। सौ तक का पहाड़ा और हाई स्कूल लेबल के सवालों को चुटकियों में हल करने वाली एक छात्रा को तो उन्होंने अपने आवास पर ही धमका दिया।
कुल मिलाकर देखा जाए तो राज्य के शिक्षा विभाग को ही शिक्षा ग्रहण करने की सख्त जरूरत है। तो वहीं शिक्षामंत्री और उनके विभाग के सचिवों को अनुशासन में रहने की। ऐसा अगर नहीं किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था किसी काम की नहीं बचेगी।

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