रेंगते शहर को स्मार्ट बनाने की धुन

कटाक्ष-

निखट्टू
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की व्यस्ततम समय में रफ्तार 15 से 20 किलोमीटर प्रति घंटे की है। यूं कहें कि बढिय़ा से बढिय़ा वाहन भी इस समय में सड़कों पर रेंगने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। चौड़ी सड़कों पर ठेले वालों का कब्जा तो कुछ जगहों पर कार वालों ने कब्जा जमा रखा है। सांपों की चाल जैसी टेढ़ीमेढ़ी सड़कें और नालियां, सफाई के नाम पर सन्नाटा। सुविधाओं के नाम पर सिर्फ असुविधाएं और काम के नाम पर धड़ाम होन वाले नगर निगम को इसका कोई $गम नहीं है। उसे राजधानी के लालों से ज्यादा अपने दलालों पर भरोसा है। जो आंकड़ों का अंकगणित बैठाकर इसको सबसे बेहतरीन शहर साबित कर देंगे। उसी के आधार पर इसको स्मार्ट शहर बनाने का परमिशन भी मिल जाएगा। मिल क्या जाएगा मिल गया समझो। अब ऐसे शहर में जब कोई विदेशी आएगा और उसके सिर पर उड़ती हुई पॉलीथेन की थैली गिरेगी तो उसकी क्या मानसिकता बनेगी इस स्मार्ट शहर के बारे में इसका न तो मेयर ने केयर किया और न ही उनके उन दलालों ने।
अभी-अभी इसी ट्रैफिक में रेंगता हुआ मैं जैसे ही जय स्तंभ चौक पर पहुंचा तो वहां लगे माइक में नागिन फिल्म की पुरानी वाली बीन की धुन गूंज रही थी। कसम से..... मैं तो शर्म से पानी-पानी हो गया। इसके साथ मैं लोगों की ओर देखकर ये कन्फर्म होने में लग गया कि मैं इंसान ही हूं या फिर.... वही बन गया? क्या कहा नहीं समझे आप? अरे भाई चकरा गया था कि कहीं मैं सांप तो नहीं बन गया हूं। बड़ी देर बात य$कीन आया कसम से।  तब जाकर जान में जान आई। कहीं न कहीं ये उसी अवतार का ज़हर है जो इस कॉलम में उतरता जा रहा है। इससे पहले कि आप भी म$गालते में आ जाएं अब मैं ही निकल लेता हूं घर की ज़ानिब... तो फिर कल आपसे फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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