सरकारी इंजीनियर की ईमानदारी
निखट्टू
एक बार एक इंजीनियर साहब को पर्वतारोहण का शौक चर्रा गया। तमाम विभागी अधिकारियों की एक टीम बनाई। बिल्कुल सरकारी अंदाज में दो दिन प्रशिक्षण लिया और आठ दिनों तक घर में आराम किया। इसके बाद रवाना हो गए हिमालय की ओर। जब हिमालय पर चढ़ाई कर रहे थे तो उसी दौरान एक वक्त ऐसा आया जब वे अचानक पहाड़ से नीचे लटक गए। ऐसे में वे जोर-जोर से रोने लगे। उनके सहयोगियों ने उनकी हौसलाआ$फजाई किया कि सर रोइए मत। आप एक बेहद मजबूत रस्सी से लटके हैं आपको कुछ नहीं होगा। इस पर इंजीनियर ने उस अधिकारी को वहीं से डांटा और बोला कैसे न रोऊं, मुझे पता है कि ये रस्सी कितनी मजबूत है। ये हमारी ही फैक्ट्री में बनाई गई है, और इसकी लॉट को जिस निरीक्षक ने पास किया है उसको भी अच्छी तरह से जानता हूं। वहां इसको किन शर्तों पर पास किया गया है वो भी मैंने ही करवाया है, मगर पता नहीं था कि मेरी रस्सी एक न एक दिन मेरी ही जान लेगी। लिहाजा अगर लटका हुआ हूं तो इसमें भी हमारे बच्चों के भाग्य का ही सहारा है।
अब साहब की ये सरकारी ईमानदारी सुनकर वहां मौजूद लोग हंस पड़े। मैं भी उनकी देशभक्ति का लोहा मान गया। अब आप जो भी मानें मानते रहिए। विचारों के समुद्र से तथ्यों के मोती छानते रहिए। तब तक मैं भी घर जा रहा हूं, अगली मुलाकात कल होगी तब तक के लिए जय...जय।
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