अम्मा की टांग और कुर्सी का राग

कटाक्ष-

निखट्टू
देश की एक बड़ी सियासी पार्टी इन दिनों चर्चा में है। कारण है कि लगातार उसके एक से एक बड़े कद्दावर नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। तो वहीं पार्टी की आलाकमान अपने बाबू के लिए लोरियां गा रही हैं। आलम ये है कि जो ठीक से साइकिल का हैंडिल नहीं थाम सकते उनको हवाई जहाज थमाने जा रही हैं। अब ऐसे में दुर्घटना तो होगी ही। अच्छा इनके साथ दुर्घटनाएं होने पर कोई न कोई इनका दोष अपने सिर लेने को आ ही जाता है। हद हो गई तलवे चाटने की? उधर आलाकमान का पुत्रमोह पूरी तरह जाग चुका है। उनकी बात भी जायज है मगर उससे पहले ये तो देखना होगा कि उस आदमी के पास कामर्शियल पायलेट का लाइसेंस और फ्लाइट उड़ाने का पूरा तज़ुर्बा है या नहीं। दरअसल उनके सपूत हॉल का हाल ही नहीं जानते और चाटुकार उनकी अम्मा को बता रहे हैं कि तुम्हारे लाल ने तो कमाल कर दिया। अम्मा भी फूल कर कचौड़ी हो गईं। अब असलियत उनको कौन समझाए कि इसी पुत्र मोह के कारण पूरी पार्टी की दुर्दशा हो रही है। पुराने और कद्दावर लोग आपको छोड़कर जा रहे हैं। इनको अब कौन समझाए कि अम्मा अब तो इस पुरानी कुर्सी को बख़्श दो। इससे पहले कि उसकी तो टांगों में लगी दीमक कहीं आपके पैर में प्लास्टर न चढ़वा दें।  उस कुर्सी को छोड़कर आप स्थान परिवर्तन कर लीजिए। कम से कम अपनी भारतीय सास से कुछ तो सीख लिया होता आपने? हार पर हार मिल रही है। उस पर भी हार नहीं मान रहे आपके सपूत। अगर इन्हीं में से एकाध हार किसी भारतीय कन्या के गले में डाल दिया होता तो आप अब तक कम से कम दो बच्चों की दादी बन गई होतीं। खैर जब जो होना ही नहीं है उसको लेकर क्या सोचना? घर उनका है कुर्सी उनकी और टांग भी उन्हीं की। लिहाजा उनको उनके हाल पर ही छोड़ देने में भलाई है। तो भैया मेरे वो अपना घर देखें और हम अपने घर का रास्ता लेते हैं। कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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