झूठे आंकड़ों के पहाड़ पर दहाड़ रही पुलिस: आप



इस साल के 4 महीनों में 76 नक्सलियों के एन्काउंटर, 639 के सरेंडर और 665 की गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक डॉ. संकेत ठाकुर ने कहा कि पुलिस सिर्फ झूठे आंकड़ों के पहाड़ पर दहाड़ रही है। इनका सच से कोई सरोकार नहीं है। बस्तर आज ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां या तो आप पुलिस समर्थक हैं या फिर माओवादियों के, मौत दोनों ओर निश्चित है। उन्होंने सीधा सवाल किया कि सरकारी आंकड़ों के हिसाब से हर 50 आदिवासी के पीछे एक सुरक्षा बल का जवान है तो फिर नक्सलवादी अभी तक यहां क्यों जमे हैं? बस्तियों के भीतर गए पुलिस वालों को कैसे निशाना बना रहे हैं?
डर और सरेंडर के समीकरण पर डॉ. संकेत ठाकुर की बेबाक राय-
सरकार नहीं चाहती नक्सलवाद से मुक्ति-
डॉक्टर संकेत ठाकुर ने कहा कि सारी चीजों को देखने के बाद अब सरकार की नक्सलवाद से मुक्ति की मंशा पर भी शक होने लगा है। संभवत: सरकार की मंशा ही नहीं है कि बस्तर से माओवाद का खात्मा हो। यही कारण है कि इतनी बड़ी तादाद में सुरक्षाबलों की तैनाती के बाद भी वहां माओवादी अपनी जड़ें जमाए बैठे हैं, और उनकी आड़ में आम आदिवासी मारा जा रहा है।
गलत हैं ये सारे आंकड़े: आर्य
आम आदमी पार्टी के बस्तर अध्यक्ष रोहित सिंह आर्य ने तो सरकारी आंकड़ों को सिरे से खारिज़ कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकारी आंकड़े में कुल 2 हजार नक्सलियों की तादाद बताई गई थी। उसमें से इसी साल 76 मार दिए गए और 665  गिरफ्तार हुए और 639 ने सरेंडर किया। तो कुल मिलाकर हुए 1377 अब अगर दो हजार में से इसको घटा दिया जाए तो बचते हैं 633। तो क्या इतने कम नक्सलियों को हमारी फोर्स खत्म नहीं कर पा रही है?
सरेंडर के पीछे का डर-
श्री आर्य ने तो दो टूक लहजे में कहा कि यहां आदिवासियों को मार कर नक्सली बता दिया जाता है। किसी को भी घर से उठा ले जाते हैं और फिर तीन दिनों बाद उसके एन्काउंटर की खबर आती है। ये कब किसका एन्काउंटर कर दें कुछ कहा नहीं जा सकता। तो वहीं कब किसको भय दिखाकर नक्सली बना दें कोई नहीं जानता। आदिवासियों के दोनों ओर मौत मंडरा रही है।
क्या है इसके पीछे की साजिश-
खनिज पदार्थों और जड़ी-बूटियों से भरे बस्तर को आदिवासियों से मुक्त कराकर इसको पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को सौंपने की साजिश चल रही है। इनकी कोशिश है कि कितनी जल्दी यहां से आदिवासियों को हटाकर इसको उन लोगों को सौंप दिया जाए।
क्या कहते हैं पुलिसिया आंकड़े-
पुलिसिया रिकार्ड के मुताबिक इस साल जनवरी से लेकर अप्रैल तक यानि सिर्फ चार महीने के अंदर ही रिकॉर्ड 76 नक्सली मारे गए हैं जबकि पिछले साल 2015 में इसकी संख्या सिर्फ 15 थी। साल 2016 के पहले चार महीनों के भीतर ही 665 माओवादी गिरफ्तार हुए हैं, जबकि 639 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। पिछले साल ठीक इसी दौरान 435 नक्सली गिरफ्तार हुए थे और 134 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था।

साल 2015 में माओवादियों की तरफ से 1,088 की गई हिंसा में 226 लोगों की जान चली गई थी। मरनेवाले इन 226 लोगों में से 168 आम लोग और 58 सुरक्षाकर्मी शामिल थे। वहीं पिछली बार 89 लोग मारे गए और 1,668 गिरफ्तार किए गए जबकि, 570 कैडर्स ने अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
संसदीय समिति ने जताई चिंता-
साल 2013 की तुलना में साल 2015 में सेना और आम आदमी के मरने वालों में करीब 42 फीसदी का ईजाफा हुआ है। संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के सात राज्यों के करीब 35 जिलों में चल रही हिंसावादी नक्सली गतिविधियों पर चिंता व्यक्त की गई।
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