पोल का झोल


तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते, इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते।


देश का सबसे ऊंचा झंडा तेलीबांधा मरीन ड्राइव में लगाकर अपनी पीठ थपथपाने वाला नगर पालिक निगम इन दिनों अजीबोगरीब परेशानियों से गुजर रहा है। आलम ये है कि आए दिन ही इस सबसे ऊंचे तिरंगे का अपमान हो रहा है। अब तक छह से ज्यादा बार राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का गौरव भी हमारे नगर पालिक निगम को हासिल हो चुका है। जरा सी हवा क्या चलती है, पोल से तिरंगा ही गोल हो जाता है। अब ऐसे में अगर तत्काल उस पोल पर झंडा नहीं लगाया जाता है तो ये फिर तिरंगे की अवमानना की श्रेणी में आता है। यही नहीं कितनी बार तो फटा हुआ तिरंगा भी देर तक लहराता रहा है। ये भी राष्ट्रीय ध्वज की अवमानना की श्रेणी में आता है। ऐसे में धन्य है जिला प्रशासन जो दु:शासन बना बैठा है, अगर यही अपराध किसी कमजोर व्यक्ति ने किया होता तो उसके ऊपर तमाम धाराओं के तहत मुकदमा कायम कर उसको तत्काल प्रभाव से जेल में ठूंस दिया गया होता, पर इनके साथ ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। राज्य में तिरंगे की अवमानना का ये कोई नया मामला नहीं है।  राज्य के एक कद्दावर मंत्री की गाड़ी पर तो कई बार उल्टा तिरंगा लगाया जा चुका है। मजेदार बात तो ये कि इन लोगों पर कोई भी वैधानिक कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या प्रशासन को मंत्रियों और रसूखदारों की गलतियां नहीं दिखाई देती हैं? या फिर इस प्रशासन को वास्तव में दिखना बंद हो गया है? अगर यही गलती  किसी गरीब व्यक्ति ने किया होता तो क्या उसको भी ये सरकार ऐसे ही नजरंदाज़ कर देती? ये तमाम ऐसे अनुत्तरित सवाल है जिनका जवाब देने में जिम्मेदारों को पसीने छूटने लगेंगे। सरकारी विभागों में एक सूत्रीय कार्यक्रम जोरशोर से चलाया जा रहा है कि अपना काम बनता तो भाड़ में जाए जनता।
कहा जाता है कि कानून की निगाह में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता है। सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। तो ऐसे में फिर नगर पालिक निगम और उस कद्दावर मंत्री के खिलाफ अभी तक वैधानिक कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

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