वन विभाग का नया राग
तुम मंजि़लों से कह दो करें मेरा इंतजार, ठहरा हुआ जरूर हूं भटका नहीं हूं मैं।
राज्य में भालुओं और इंसानों के टकराव को रोकने के लिए 14 साल पहले बनी जामवंत योजना कहां गई इसका कोई अता-पता नहीं है। अलबत्ता प्रसाशनिक अधिकारी इसके जीवित होने का दम जरूर भरते नज़र आ रहे हैं। तो वहीं संसदीय सचिव तक इसका पूरा बजट बता पाने में खुद को असहाय महसूस कर रही हैं। विभाग के सचिव भी ये कहकर पल्ला झाड़ ले रहे हैं कि इसका पता तो वन्यजीव संरक्षण विभाग वाले ही बता पाएंगे। ऐसे में वन विभाग की कार्यशैली पर ही सवालिया निशान लगता हुआ दिखाई दे रह है। इसी साल के मार्च महीने में ही महासमुंद के छछानपैरी में एक मादा भालू ने वन विभाग के तीन कर्मचारियों को मार डाला था। उसके बाद एक् शन में आई पुलिस ने उस निरीह भालू पर डेढ़ सौ गोलियां दागी। इसके बावजूद उसको महज 16 गोलियां लगी थीं। इसको लेकर भी खूब हो हल्ला मचा था। उस वक्त सवाल तो ये भी उठाया गया था कि आखिर विभाग के पास टें्रकुलाइजर गन थी तो गोली क्यों मारी गई। अब वहीं खुलासा हुआ है कि रायपुर में तो ट्रेंकुलाइजर गन थी ही नहीं। ऐसे में जामवंत का अंत होना था वो हो गया। विभागी अधिकारियों ने जांच कमेटी बैठा दी । वो कमेटी भी ऐसी बैठी कि आज तक उठने का नाम नहीं ले रही है।
ऐसे में अब एक बार फिर वन विभाग नया राग अलापने जा रहा है। वन मंत्री का कहना है कि कैंपा निधि से भालुओं के रहवास और उनकी सुविधाओं को पुनसर््थापित करने के लिए 2.75 करोड़ का बजट आया है। देखना ये होगा कि उस बजट से कितने भालुओं का भला होता है? कुल मिलाकर वन विभाग की कार्यशैली देखकर ऐसा नहीं लगता कि इससे कुछ ज्यादा हो पाएगा।
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