अफसरशाही पर अंकुश जरूरी



हुबाब-ए लहर को देखो वो कितना सर उठाता है, मगर मैं वो बुरी शय है कि गिरकर टूट जाता है।

प्रदेश को सरकारी मशीनरी ही चला रही है। ये एक ऐसा जुमला है जो गाहे-बेगाहे सुना जाता है। इसकी जमीनी सच्चाई चाहे जो भी हो मगर आलम ये है कि यहां जनता की न तो रमन सर सुनते हैं और न अफसर। सीएम के जनदर्शन से लेकर मंत्रालय तक अफसरशाही पूरी तरह से हावी दिखाई देती है। यहां के अफसर खुद को मुख्यमंत्री से भी ज्यादा ताकतवर समझते हैं। इसकी शिकायत आम जनता तो क्या सांसद और राज्य के मंत्री तक कई बार कर चुके हैं। इसके बाद भी ये मशीनरी सुधरने का नाम नहीं ले रही है। इसमें खुलेआम वो सब कुछ  चलता है जो कानूनन नहीं होना चाहिए। तमाम शिकायतों के बावजूद भी इन पर कड़ी कार्रवाई न होना भी तमाम संदेहों को जन्म देता है। ऐसे में सीधा सा प्रश्र है कि जो अफसर सांसद और मंत्रियों की नहीं सुनते हैं, वो भला राज्य की गरीब जनता की क्या सुनेंगे? मोटी तनख़्वाह और सुविधाओं के ढेर पर बैठे ये कुछ लोग सिवाय प्रशासनिक शब्दों की जुगाली के और कुछ भी नहीं करते । जनता मरे या जिए इनकी बला से।
अधिकांश का व्यवहार भी ठीक नहीं है। राज्य की अफसरशाही बेलगाम हो चुकी है। इनका व्यवहार भी जनता और आम आदमी के प्रति ठीक नहीं है। सिवाय कुछ प्रतिशत अफसरों को छोड़कर। बाकी तो खुद को आज भी हिटलर से कम नहीं समझते।
सरकार बार-बार कहती जा रही है कि जनता के साथ अच्छा व्यवहार करें अधिकारी,मगर धरातल पर ऐसा कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि  प्रदेश का विकास कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रह है। सरकार जब तक इन प्रशासनिक अधिकारियों की लगाम नहीं खींचेगी, इनकी मनमानी रुकने वाली नहीं है। अंकुश सिर्फ हाथी के लिए ही नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए भी जरूरी होता है जो निरंकुश हो चुका हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इनके ऊपर भी अंकुश जरूर लगाएगी। इससे न सिर्फ राज्य का विकास होगा बल्कि आम लोगों को भी सरकारी सुविधाओं का उचित लाभ मिल सकेगा।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव