दावे दवाई और मिठाई

कटाक्ष-

निखट्टू

साधो... कांग्रेस भवन में इन दिनों मिठाइयां बंट रही हैं। बधाइयां दी जा रही हैं। खुशियां मनाई जा रही हैं। कारण तो आप समझ ही गए होंगे न? अरे भाई पार्टी के कद्दावर नेता अजीत जोगी ने नई पार्टी बनाने की घोषणा जो कर दी है। जो कभी कांग्रेस भवन नहीं आते थे उनको जबरन घर से बुलवाया जा रहा है। जिनको सुगर है उनको मिठाइयां खिलाई जा रही हैं। अलबत्ता गांधी मैदान के दूसरे ही छोर पर तमाम मजदूर भूखे-प्यासे मुद्दतों से पूरे दिन बैठे रहते हैं। उनको कोई पूछने वाला तक नहीं दिखाई देता। शायद इसी का नाम राजनीति है। इनमें से कई तो ऐसे हैं जो उस वक्त भी यहां बैठा करते थे जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, उस वक्त भी बैठा करते थे जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, मगर आज तक कांग्रेस भवन से किसी ने इनको एक भी रोटी का टुकड़ा नहीं डाला। कभी यहीं स्व. विद्या भैया के पार्टी से जाने पर भी ऐसी ही खुशियां मनी थीं। उधर सागौन बंगले में बैठे जोगी को पूरे देश से जितने बड़े-बड़े नेताओं की बधाइयां मिल रही हैं। इससे पहले शायद किसी कांग्रेसी नेता को नहीं मिली रही होंगी। कांग्रेस भवन के भीतर जब लोगों को जबरिया मिठाइयां खिलाई जा रही थीं तो गांधी मैदान के दूसरे कोने पर एक मजदूर के मोबाइल पर जगजीत सिंह की ये $गज़ल बज रही थी, तुम इतना जो मुस्करा रहे हो क्या $गम है जिसको छिपा रहे हो। तो हमें इस सारे वाकये के पीछे का समीकरण समझ में आया। एक बात तो समझ में नहीं आई कि ये मिठाइयां आखिर जबरिया क्यों खिलाई जा रही हैं? आखिर क्यों बढ़ाया जा रहा है लोगों का सुगर लेबल?
असलियत तो ये भी है कि कांग्रेस को छोडऩे वालों की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में कितनी मिठाइयां बांटेंगे बांटने वाले? मिठाइयां को छोड़कर अब अपने-अपने जनाधार को तलाशने की प्रक्रिया भी तेज कर दें। अभी चुनाव में ढाई साल का समय बाकी है, ऐसे में अजीत जोगी ने तो अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। उनके यज्ञ का घोड़ा बलरामपुर से बीजापुर की ओर तेजी से भागता जा रहा है। तो उनके प्रतिद्वंदी होने का दम भरने वालों का घोड़ा खड़े-खड़े चना -घास उड़ाने में लगा है, और दावेदार उसी खड़े घोड़े को दौड़ में टॉप आने का दावा कर रहे हैं। जब कि सच्चाई ये है कि ऐसे दावे करने वालों को ही दवाई की जरूरत है। तो फिर आप इनकी दवाई तलाशिए और मैं निकलता हूं घर... कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय..जय।

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