कांग्रेस भवन में कालि$ख

जाने कितनी उड़ान बाकी है, इस परिंदे में जान बाकी है।


छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस का भवन जहां कभी श्यामा चरण शुक्ल, विद्या चरण शुक्ल और मोती लाल वोरा, वी. नारायण सामी तथा अजीत जोगी जैसे  बड़े नेता बैठा करते थे। झीरम घाटी में शीर्ष नेतृत्व को खोने के बाद से लेकर अब तक लगातार  कांग्रेस संगठन नेतृत्व के संकट से जूझ रहा है। कभी जिस कांग्रेस भवन को लोग एक सम्मान की दृष्टि से देखा करते थे। पिछले कुछ सालों से ये घटिया और घृणित सियासत का केंद्र बनता जा रहा है। पहले वी. नारायण सामी के चेहरे पर कालि$ख पोतना और फिर कल की शाम पार्टी के कद्दावर नेता अजीत जोगी के नाम के साथ भी वही उपक्रम दोहराना, कांग्रेस के भावी नेतृत्व पर सवालिया निशान लगा रहा है। इनके इस कृत्य से कांग्रेस की रही-सही इज्जत भी मटियामेट हो गई। इससे समाज में यही संदेश जा रहा है कि खिसियाई कांग्रेस कमेटी के लोग अब खंभा नोंचने में लगे हैं। जब कि इनको ये समय सोचने में लगाना चाहिए था। मजेदार बात तो ये कि ऐसा करने वाले  लोग खुद को शिक्षित और भद्र समाज का हिस्सा बताते रहे हैं। उनके इस कृत्य में कही से भी भद्रता देखने को नहीं मिलती। अलबत्ता इन लोगों ने अपनी खीस निकाल कर अजीत जोगी को बढ़त ही दिलाने का काम किया है।  इनके इस काम से आम जनता के मन में कांग्रेस के नए कार्यकर्ताओं के प्रति नफरत पैदा होगी। नेतृत्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस से एक-एक कर कद्दावर लोगों का मोहभंग होना पार्टी के लिए आसन्न खतरे का संकेत है। ऐसे में पूरे भारत में अपनी छवि खोती जा रही कांग्रेस छत्तीसगढ़ में भी मिटने की कगार पर आ पहुंची है। कार्यकर्ताओं की खीज़ इसी का नतीजा है। देश की कांग्रेस अब महज दो हिस्सों में बंट चुकी है। एक में तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी हैं, तो दूसरी ओर दिग्विजय सिंह जैसे लोग। बिहार और बंगाल के अलावा केरल में भी कांग्रेस का जो हाल हुआ है उसे देखकर दया आती है। ऐसे में अजीत जोगी के बढ़ते सियासी कद की खुन्नस आखिर कहीं तो निकलनी थी। ये कुल मिलाकर जोगी के कोटमी और बलौदाबाजार में किए गए योग का असर है। शुरुआत से लगातार जनता के मुद्दों को दरकिनार कर जोगी को उखाडऩे में जोर लगाने वाले प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष को अब इस बात का एहसास हो रहा होगा कि अजीत जोगी के मायने क्या हैं?
अभी तो कोर्स शुरू हुआ है परीक्षा आने में ढाई साल बाकी हैं। ऐसे में अजीत जोगी जिस तरह से अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं इससे एक बात तो तय है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में अपना अस्तित्व बचाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। इसके अलावा कुछ अपरिपक्व लोगों की नादानी पार्टी की बची-बचाई इज्जत को भी मटियामेट कर देगी। ऐसे में पार्टी के नेताओं को चाहिए कि वे सबसे पहले अपनी पार्टी के विघटन को रोकने के लिए मंथन करें। जोगी के नाम पर कालिख बाद में पोत लेगें।

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