राज्य की बीमार स्वास्थ्य सेवाएं


ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा, मैं सज़दे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा।


प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। ऊपर से दिखाने के लिए सरकार ने इस पर जमकर कागजी रंग-रोगन किया है। इसके कारण ये बाहर से चकाचक दिखाई तो देता है, मगर भीतरी हाल इतनी भयावह है कि कुछ कहते नहीं बनता। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में ब्रांडेड कंपनियों के एमआर की द$खल, मुख्यमंत्री के आदेश के बावजूद भी सरकारी डॉक्टर्स का जेनेरिक दवाएं लिखने से परहेज। मरीजों को सरकारी दवाओं के नाम पर कुछ भी नहीं मिलना। बाद में वही दवाएं कभी किसी सड़क के किनारे तो कभी कहीं किसी के खेत में मिलना, अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है। डॉक्टर्स और दलालों का गठजोड़, मरीजों को दुरियाने और भगाने की होड़। दलालों और प्राइवेट अस्पतालों की बढ़ती कमाई, लाशों से भी पैसों की उगाही और उस पर भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की रहस्यमयी चुप्पी, अपने आप ही बहुत कुछ बयां कर जाती है। बिलासपुर के नसबंदी कांड, मोतियाबिंद कांड, महावर की सिप्रोसिन जैसे तमाम कारनामें स्वास्थ्य विभाग की कारस्तानी के ही नतीजे हैं।
जनता को लूटने वाले तमाम प्राइवेट नर्सिंग होम्स को किसी न किसी सरकारी डॉक्टर या फिर अधिकारी का वरदहस्त प्राप्त है। उसी के रसूख का फायदा उठाकर ये लोग गरीबों का गला काटने पर आमादा हैं।
राज्य की प्रशासनिक मशीनरी को तो बस अपनी कमाई और भलाई की सूझ रही है। वो कमाइयों के रिकार्ड बनाने के लिए जूझ रही है। एसीबी भी सब बूझ रही है। जो भी पकड़ाता है उसकी ईमानदारी का आंकड़ा कई सौ करोड़ पार कर जाता है। ऐसे भ्रष्ट और अशिष्ट अधिकारी नियम कायदे की आड़ में खिलवाड़ करने से नहीं चूक रहे हैं। सरकारी खजाने से पैसे तो लेते हैं मगर जिम्मेदारी की जैसे ही बात आती है, साहब बगलें झांकने लगते हैं।
इनकी सारी बहादुरी फाइलों में ही दिखाई देती है और धरातल से उसका कोई लेना-देना नहीं होता।
सरकार को चाहिए कि वो ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की न सिर्फ सम्पत्तियों को राजसात करे, बल्कि इनके खिलाफ अमानत में खयानत का मामला दर्ज कर इनको तत्काल सलाखों के पीछे पहुंचाया जाए। इसके बाद इनके सारे दस्तावेजों को अयोग्य करार दे दिया जाए, ताकि ये कभी भी किसी भी प्रकार की नौकरी न कर सकें।

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