बड़े नाम और उनके काम
कटाक्ष-
निखट्टू
कवि सम्मेलनों के आयोजनों के पीछे जिस तरह की साजिशें चलती हैं। वे किसी भी हालत में जायज नहीं ठहराई जातीं। मोटे-मोटे लिफाफों के पीछे का गणित यही होता है कि तू मुझे बुला मैं तुझको। इसके अलावा भी तमाम तरह का गुणा भाग इसमें करने वाले आयोजकों का कहना है कि काफी मशक्कत के बाद जाकर टीम तैयार होती है। इसमें ये भी देखा जाता है कि जिसको बुलवाया जा रहा है वो भविष्य में इस आयोजक कवि को कितना फायदा पहुंचा पाएगा। पहले रचनाओं के आधार पर कवि तय हुआ करते थे। आज तो सियासी पहुंच और बड़े आयोजन करने वालों को बड़ा कवि बताकर पेश किया जा रहा है। भले ही उनको ठीक से तुकबंदियां तक करनी नहीं आती हों, मगर यदि वे आयोजन बड़े कर लेते हैं और थोड़ी सी भी जोड़ गांठ करके कुछ कह पाते हैं तो फिर तो उनके क्या कहने? ये दीगर बात है कि उनके कविता पाठ के दौरान मंच संचालक श्रोताओं को बोलकर जबरिया तालियां पिटवाए, मगर जाते वक्त दांत निपोर कर यही कहेंगे कि अरे दादा आपने तो मंच मार लिया। इसके पीछे का गणित यही होता है कि उनको भी उस आयोजक के कार्यक्रम में जाना होता है न?
ये सुनकर दर्शन शास्त्र का एक श£ोक याद आता है जिसमें कहा गया है कि ऊंट के ब्याह में गधे ने गाया गीत। इसके बाद परस्पर प्रशंसा की कि अरे वाह रे रूप और वाह रे ध्वनि। तो कुल मिलाकर हिंदी के अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में यही सब चल रहा है, अगर आप में भी वो कूबत है तो आप भी बड़े कवि बनने को तैयार हो जाइए। पूरे देश से बुलावे आने लगेंगे। तो आप अब अपने बुलावे का इंतजार कीजिए और मेरा तो बुलावा घर से आ चुका है लिहाजा मैं भी अब निकलता हूं घर। कल फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
निखट्टू
कवि सम्मेलनों के आयोजनों के पीछे जिस तरह की साजिशें चलती हैं। वे किसी भी हालत में जायज नहीं ठहराई जातीं। मोटे-मोटे लिफाफों के पीछे का गणित यही होता है कि तू मुझे बुला मैं तुझको। इसके अलावा भी तमाम तरह का गुणा भाग इसमें करने वाले आयोजकों का कहना है कि काफी मशक्कत के बाद जाकर टीम तैयार होती है। इसमें ये भी देखा जाता है कि जिसको बुलवाया जा रहा है वो भविष्य में इस आयोजक कवि को कितना फायदा पहुंचा पाएगा। पहले रचनाओं के आधार पर कवि तय हुआ करते थे। आज तो सियासी पहुंच और बड़े आयोजन करने वालों को बड़ा कवि बताकर पेश किया जा रहा है। भले ही उनको ठीक से तुकबंदियां तक करनी नहीं आती हों, मगर यदि वे आयोजन बड़े कर लेते हैं और थोड़ी सी भी जोड़ गांठ करके कुछ कह पाते हैं तो फिर तो उनके क्या कहने? ये दीगर बात है कि उनके कविता पाठ के दौरान मंच संचालक श्रोताओं को बोलकर जबरिया तालियां पिटवाए, मगर जाते वक्त दांत निपोर कर यही कहेंगे कि अरे दादा आपने तो मंच मार लिया। इसके पीछे का गणित यही होता है कि उनको भी उस आयोजक के कार्यक्रम में जाना होता है न?
ये सुनकर दर्शन शास्त्र का एक श£ोक याद आता है जिसमें कहा गया है कि ऊंट के ब्याह में गधे ने गाया गीत। इसके बाद परस्पर प्रशंसा की कि अरे वाह रे रूप और वाह रे ध्वनि। तो कुल मिलाकर हिंदी के अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में यही सब चल रहा है, अगर आप में भी वो कूबत है तो आप भी बड़े कवि बनने को तैयार हो जाइए। पूरे देश से बुलावे आने लगेंगे। तो आप अब अपने बुलावे का इंतजार कीजिए और मेरा तो बुलावा घर से आ चुका है लिहाजा मैं भी अब निकलता हूं घर। कल फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
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