गरीबों के बच्चों से मजाक
खिलौनों की दुकानों की तरफ़ से आप क्यूँ गुजऱे, ये बच्चे की तमन्ना है ये समझौता नहीं करती।
राज्य में गरीबों और उनके बच्चों का मजाक बनाना कोई नई बात नहीं है। राज्य की भ्रष्ट हो चुकी अफसरशाही ने पूरी व्यवस्था को ही नष्ट कर दिया है। यहां काम से ज्यादा जोर कमाई पर दिखाई देता है। जहां मामूली सा क्लर्क भी कई लाख का आसामी निकलता है। ऐसे में अफसरों की तो बात ही छोड़ दीजिए। ताजा कारनामा महिला एवं बाल विकास विभाग कांकेर का है। यहां तकरीबन सत्रह साल पहले से खरीद कर लाए गए खिलौने जिनको यहां की आंगनबाडिय़ों में बांटा जाना था, आज तक नहीं बांटे गए। रखे-रखे उन सभी खिलौनों की दशा खराब हो गई है। मामले का खुलासा उस वक्त हुआ जब आदिवासी समाज ने अपना प्रतीक्षालय खाली करने के लिए कलेक्टर से शिकायत की । शिकायत पर कलेक्टर ने विभाग को तत्काल आर्डर जारी कर दिया । जब प्रतीक्षालय के कमरों के ताले खोले गए तो वहां मौजूद अधिकारियों की आंखें चमक गईं। यहां के तीन कमरों में तकरीबन एक ट्रक खिलौना निकला।
जाहिर सी बात है कि ये खिलौने सरकार ने गरीबों के बच्चों को बंटवाने के लिए मंगवाए थे, लेकिन लापरवाह अधिकारियों की नक्कारापंथी की वजह से ये उन तक नहीं पहुंच पाए, जो इनके असल ह$कदार थे। इससे पहले भी बस्तर में तथाकथित अमृत दूध पीकर दो बच्चों की जान चली गई, और वो दूध का सैंपल जांच में पास हो गया। प्रदेश की महिला एवं बाल विकास अधिकारी ने सारा दोष गरीबों की गंदगी पर मढ़ कर शिवनाथ में स्नान कर लिया।
सीधी सी बात ये है कि गरीबों को लेकर न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार गंभीर है। जितना दिखावा और नाटक पूरे राज्य में किया जा रहा है। उतनी अगर कार्रवाई हुई होती तो आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये नहीं कहना पड़ता कि कार्यकर्ता गांवों में जाकर लोगों को सरकार की उपलब्धियां बताएं। अब इनको कौन समझाए कि जनता सब कुछ समझती और देखती है। उसको बरगलाने की कोई जरूरत नहीं है। उसको सब पता है कि भाजपा और उसके कार्यकर्ता कितना काम कर रहे हैं।
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