कटखने कुत्तों का कमाल

कटाक्ष-

निखट्टू
नगर पालिक निगम रायपुर के लोग जब से कुत्तों को पकडऩा छोड़ दिया राजधानी के कुत्तों ने राहत की सांस ली। हालांकि कुछ बगावती कुत्तों ने अब भी उत्पात मचा रखा है। गाहे-बेगाहे किसी न किसी को काट खाते हैं। ऐेसे में बेचारा गरीब आदमी जिला अस्पताल जाता है तो वहां के कर्मचारी गुर्राते हैं। मेकाहारा जाए तो वहां के कर्मचारी काट खाने दौड़ते हैं। ऐसे में डरा सहमा मरीज कभी मां की हंसुली तो कभी पत्नी की पायल बेंचकर किसी झोलाछाप डॉक्टर से रैबीज का टीका लगवाता है।
राज्य के स्वास्थ्य कर्मचारी तो आजकल कुछ ज्यादा ही कटखने हो गए हैं। किसी को डांटते हैं तो किसी को काटते हैं। आदमी रसूखदार निकला तो चाटते हैं। और अगर गरीब असहाय निकला तो चाटा मारते हैं। यहां गरीबों को दवाई की बजाय दुत्कार आसानी से मिल जाती है।
फाइलों में इसकी बाकायदा सिलसिलेवार ढंग से आपूर्ति दिखाई जाती है। गरीबों के हिस्से का खाना साहब का कुत्ता खाता है।
अगर वही गली का कुत्ता किसी नेता के नाती को काट खाए तो शहर का सबसे रसूखदार डॉक्टर बेतहाशा हांफता हुआ बंगले में जाता है। रैबीज का टीका और अच्छी ब्रांडेड सीरिंज साथ ले जाता है। खुद ही इंजेक् शन लगाता है तो सात-आठ सुंदर नर्सें अगल-बगल खड़ी होकर बच्चे का सिर सहलाती हैं और कनखियों से मंत्रीजी की ओर देखती हैं। वैसे कहा जाता है कि ज्यादा गर्मी पडऩे पर कुत्ता, हाथी और सियार जैसे जानवरों का भेजा फिर जाता है। ऐसे में वे काटते हैं मगर सरकारी कर्मचारी बेचारे गरीबों को क्यों डांटते हैं इस पर आप खुद ही विचार कीजिए। हमको भी बगल बैठे साहेब भाई कनखियों से देख रहे हैं, कि घर निकलने का वक्त हो गया और बुड्ढा कंप्यूटर नहीं छोड़ रहा है। इससे पहले कि वे कुछ अर्ज़ करें मैं अब विदा लेते हुए खुद ही निकल लेता हूं घर की ज़ानिब। तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव