योग और वियोग का समीकरण

कटाक्ष-


निखट्टू
साधो....योग भगाए रोग का नारा देकर चारा खाने वाले लोगों ने इस दिन पर कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखाई। कुछ लोगों ने तो इस दिन भी उड़ाई जमकर मलाई। लोग समझते रहे कि साहब कर रहे हैं भलाई, और उन्होंने ऐसी बुध्दि चलाई, कि सीधे बैंक खाते में आ धमकीं लक्ष्मी माई। देश के नेताओं ने भी जमकर योग किया। ये दीगर बात है कि इस दौरान किसी ने कुर्ता उतारा तो किसी की जर्सी पसीने से भीगी। कोई बैठने की बजाय खड़ा ही रहा। तो कोई ऐसा बैठा कि कार्यक्रम के बाद कई लोग लगे उसको उठाने में। अब ऐसे में भला ये योग कैसे कारगर होगा रोग को भगाने में?
जो पूरे साल मलाई खाते हों वो भला एक दिन योग करके निरोग कैसे रह सकते हैं? समस्या यही है कि ऐसे लोग तमाम बिखरे पड़े हैं। संसद भवन की कैंटीन का सस्ता भोजन उड़ाने वालों का एक दिन योग से क्या होने वाला?
अब जिस देश का प्रधानमंत्री 1 हजार करोड़ रुपए विदेशी दौरों पर उड़ा देता हो, और देश के किसानों को कुछ सौ करोड़ देने में उसके हाथ कांपते हों, इनसे कोई क्या उम्मीद करे? यही इस योग के पीछे का वियोग है। दूसरा वियोग ये है कि सरकार ने अपने कर्मचारियों और सांसदों, मंत्रियों के साथ अधिकारियों का वेतन मनमानी बढ़ाया। उनकी जिम्मेदारियां कौन तय करेगा ये किसी ने भी नहीं बताया? ऐसे तमाम वियोग इस देश की जनता के पास पहले से पड़े हुए हैं। उसको अब आप योग कराने पर अड़े हुए हैं। आपके अधिकारी भी उनके सिर पर खड़े हुए हैं। अरे उसको योग बाद में करवाना, पहले उसके बीमार बच्चे को दिलवाइए दवाई, बेकार भाई को रोजगार और कुवांरी बहन की करवाइए शादी। खाली पड़े खेत को दिलवाइए खाद और उन्नत बीज, उपज को दिलवाइए अच्छे दाम। तो अगले योग दिवस पर हम करेंगे आपके कारनामे को सलाम।
देश को सिर्फ बातें नहीं काम चाहिए, वो भी धरातल पर। लोगों का विश्वास अब वादों और दिलासों से भर चुका है। पिछले साठ सालों से सियासी कुनबा यही कर चुका है। अब सिर्फ और सिर्फ धरातल पर काम दिखाई देना चाहिए। तभी हम स्वच्छ और स्वस्थ भारत का निर्माण कर पाएंगे, जिसकी आज सख्त जरूरत है। तो आइए हम अपने देश को सबल राष्ट्र बनाने का संकल्प लें और इसी के साथ हमें भी प्रस्थान की आज्ञा दें... कल फिर आपसे मुला$कात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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