टूटती कांग्रेस का जश्र



आर.पी. सिंह
कोटमी में अजीत जोगी जब नई पार्टी का घोषणा पत्र जारी कर रहे थे, तो कांग्रेस भवन रायपुर में पटाखे फूट रहे थे। समझ में नहीं आया कि ये जश्र आखिर किस बात का ? जोगी के कांग्रेस से जाने का, या फिर देश में कांग्रेस के टूटने का? छत्तीसगढ़ में जोगी के साथ छोड़ते ही उधर महाराष्ट्र में कांग्रेस अध्यक्ष गुरुदास कामत ने भी कांग्रेस से नाता तोड़ लिया। ये पिछले काफी दिनों से नाराज बताए जा रहे थे। उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश में भी कांग्रेस नेताओं के बागी होने को लेकर काफी परेशान चल रही है। एक तरफ़ जहां कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर प्रश्नचिह्न बना हुआ है, तो दूसरी ओर कांग्रेस का एक बड़ा तबक़ा राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने का विरोध कर रहा है जिससे कांग्रेस जनों में निराशा है, और उन्हें लगता है कि पार्टी में कुछ नहीं बदलेगा । इस बात को सोनिया और राहुल गांधी ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं।  हालिया चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद किसी बड़े बदलाव की आपेक्षा की जा रही थी, मगर धरातल पर कुछ भी नहीं उतर पाया।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेतृत्व संकट से जूझ रही है। ऐसे में  अपनी इस टूटन को लेकर कोई कितना भी खुश हो ले, मगर असलियत तो यही है कि अब पटाखे छोड़कर ये चिंतन और मंथन शुरू कर दें। वरिष्ठ नेता किसी भी पार्टी का चेहरा हुआ करते हैं। लोग उन्हीं की छवि और अच्छे आचरणों का हवाला देते हैं। जो लोग वरिष्ठ नेताओं के जाने के बाद इतने खुश दिखाई दे रहे हंै उनको इस बात की कतई समझ नहीं है कि वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने का क्या मतलब होता है? सियासी गलियारों के जानकार इसका चाहे जो भी अर्थ निकालें मगर एक बात तो तय है कि इस टूटन के दूरगामी परिणाम होंगे इसमें कोई शक नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के $खैरख्वाहों को अब डैमेज कंट्रोल पर गंभीर मंथन शुरू कर देना चाहिए। इसके साथ ही साथ कोशिश ये भी हो कि भितरघात और बगावत पर भी नियंत्रण करने के उपायों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। इससे भविष्य में कांग्रेस का भला हो सकता है।

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