चिंतन के बहाने चिंता


मैं ये किसके नाम लिक्खूं जो आलम गुज़र रहे हैं, मिरे शहर जल रहे हैं मिरे लोग मर रहे हैं।



भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह प्रदेश के सियासी माहौल को परखने आए हैं। राजनीति के पारखी माने जाने वाले अमित शाह की नज़रें आने वाले चुनाव में प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह की सरकार का चौथा कार्यकाल पक्का करने की नींव रखने आए हैं। अब ऐसे में ये कोई इतना आसान काम तो है नहीं कि जब चाहा झट से रख दिया नींव का पत्थर। इस शीश महल को तामीर करने में मशक्कत करनी पड़ेगी। अलबत्ता उसकी उम्मीदों को तलाशा जा सकता है। लिहाजा इनकी पूरी कोशिश यही है कि कैसे इसकी बुनियाद के लिए मजबूत पत्थरों का जुगाड़ किया जाए। जो इक्का-दुक्का पत्थर हिलडुल रहे हैं ये इस इमारत के लिए आसन्न खतरे का संकेत हैं। श्री शाह उन्हीं पत्थरों को टटोलने और उनकी जगह पर कौन सा संग रखा जाए, उसकी संग तराशी कैसे की जाए। इन्हीं बातों पर $गौर फरमाने बलौदाबाजार के बारनवापारा में चल रहे चिंतन शिविर में तशरीफ लाए हैं। यहां उनका स्वागत जरूर पुष्प गुच्छ से हुआ, मगर उससे कहीं ज्यादा सवालों के गुच्छे उलझा कर रखे गए। इसी उलझन को सुलझाना और संगठन के भीतर की टूटन और कार्यकर्ताओं की घुटन का अंदाजा लगाना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी।
वैसे भी अमित शाह सियासत के एक बेहद मजे हुए खिलाड़ी हैं। उनके लिए ऐसी समस्याएं सुलझाना कोई खास बात नहीं है। ऐसी समस्याओं से उनका सबका आए दिन पड़ता ही रहता है। अभी उनमें जीत का जोश भी है। ऐसे में वे प्रदेश की राजनीति की समस्याओं पर कौन सा ऐसा मरहम लगाएंगे ये तो आने वाला समय ही बताएगा, मगर एक बात तो साफ है कि अजीत जोगी की प्रदेश में लगातार बढ़ती सियासी ताकत ने भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के होश उड़ा दी है। ऐसे में दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों में हलचल होना स्वभाविक है। अमित शाह का चिंतन प्रदेश के भाजपा संगठन को कितनी मजबूती देगा इस सवाल का जवाब भविष्य के पर्दे में छिपा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि  श्री शाह के  इस दौरे से आने वाले समय में भाजपा अपनी भीतरी बगावत और बड़े नेताओं की अदावत से उबर पाएगी।

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