नाम किसान का खाएं अधिकारी
कटाक्ष-
निखट्टू
सुराज की सरकार आपके द्वार का नारा सुनकर मेरा दिमाग घूम गया। मेरे भाई देश में वो कौन सा आदमी है जिसका द्वार 25 किलोमीटर लंबा है। भइया हमारा तो बिल्कुल नहीं। हमारा तो 25 मीटर भी नहीं होगा कायदे से। उस पर भी सपना सुराज का? यहां बच्चे कभी दूध पीकर तो कभी पोषण आहार खाकर मर रहे हैं। कभी मध्यान्ह भोजन में छिपकली निकलती है तो कभी सांप? ऐसे में चले हैं सुराज लाने। अलबत्ता सुराज तो उनके ड्राइंग रूम की एसी की हवा खा रहा है, जिनकी नौकरी सरकारी है। गरीबों को तो वही अधिकारी ही चबाए जा रहे हैं। बाकी जो बचता है दलाल खाकर हलाल कर देते हैं। किसान तो अब पिसान यानि आटा होने को आ गया है। नकली खाद, नकली बीज, नकली कीट नाशक दवाएं और नकली खरपतवार नाशक तथा नकली बायोखाद। अब जब इतना सब कुछ नकली हो तो फिर खेती कैसे होगी?
खाद से लेकर सिंचाई, मजदूरी और मिंजाई तक इतनी महंगी है कि लागत निकालों को खून सूखने को आ जाता है। खेती करने का मतलब ही घाटा है। ऐसे में भला किसान आत्महत्या नहीं करेगा तो क्या कीर्तन करेगा?
हां कीर्तन से एक बात जरूर याद आ गई। हर मंदिर में देखा जाता है कि पुजारी भगवान को भोग लगाता है। उनके मुंह को लगा कर आचमन कर देता है बाकी का माल उसके चेले उड़ाते हैं। तो सरकारी विभागों में भी यही होता आ रहा है। यहां नाम होता है किसान का और माल उड़ाते हैं सरकारी अधिकारी और दलाल। किसान तो सिर्फ और सिर्फ या तो खुद$कुशी और नहीं तो इनके हाथों हलाल होने के लिए ही पैदा हुआ है। लब्बोलुआब ये है कि सरकार अब खेती को भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देने जा रही है। वे मुनाफा कमाएंगी और हम अपने ही खेतों में मजदूरी करते नज़र आएंगे। खैर अभी तो धान खेत में और मूसल बबूल की डाल पर है। तो आप भी इस पर कीजिए विचार और हम भी जरा घर होकर आते हैं। कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
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निखट्टू
सुराज की सरकार आपके द्वार का नारा सुनकर मेरा दिमाग घूम गया। मेरे भाई देश में वो कौन सा आदमी है जिसका द्वार 25 किलोमीटर लंबा है। भइया हमारा तो बिल्कुल नहीं। हमारा तो 25 मीटर भी नहीं होगा कायदे से। उस पर भी सपना सुराज का? यहां बच्चे कभी दूध पीकर तो कभी पोषण आहार खाकर मर रहे हैं। कभी मध्यान्ह भोजन में छिपकली निकलती है तो कभी सांप? ऐसे में चले हैं सुराज लाने। अलबत्ता सुराज तो उनके ड्राइंग रूम की एसी की हवा खा रहा है, जिनकी नौकरी सरकारी है। गरीबों को तो वही अधिकारी ही चबाए जा रहे हैं। बाकी जो बचता है दलाल खाकर हलाल कर देते हैं। किसान तो अब पिसान यानि आटा होने को आ गया है। नकली खाद, नकली बीज, नकली कीट नाशक दवाएं और नकली खरपतवार नाशक तथा नकली बायोखाद। अब जब इतना सब कुछ नकली हो तो फिर खेती कैसे होगी?
खाद से लेकर सिंचाई, मजदूरी और मिंजाई तक इतनी महंगी है कि लागत निकालों को खून सूखने को आ जाता है। खेती करने का मतलब ही घाटा है। ऐसे में भला किसान आत्महत्या नहीं करेगा तो क्या कीर्तन करेगा?
हां कीर्तन से एक बात जरूर याद आ गई। हर मंदिर में देखा जाता है कि पुजारी भगवान को भोग लगाता है। उनके मुंह को लगा कर आचमन कर देता है बाकी का माल उसके चेले उड़ाते हैं। तो सरकारी विभागों में भी यही होता आ रहा है। यहां नाम होता है किसान का और माल उड़ाते हैं सरकारी अधिकारी और दलाल। किसान तो सिर्फ और सिर्फ या तो खुद$कुशी और नहीं तो इनके हाथों हलाल होने के लिए ही पैदा हुआ है। लब्बोलुआब ये है कि सरकार अब खेती को भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देने जा रही है। वे मुनाफा कमाएंगी और हम अपने ही खेतों में मजदूरी करते नज़र आएंगे। खैर अभी तो धान खेत में और मूसल बबूल की डाल पर है। तो आप भी इस पर कीजिए विचार और हम भी जरा घर होकर आते हैं। कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
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