पानी की राम कहानी

कटाक्ष-

निखट्टू
इतवारी भाभी अभी-अभी बाल्टियों का पूरा कुनबा ही एक साथ लेकर निकली हैं। नगर निगम का नल बेचारा मुंह बाए देख रहा है कि हे... भगवान ये क्या हो रहा है? अभी उसने इतवारी की बल्टियों की गिनती शुरू ही की थी कि पतरका भौजी ने ड्रम ले जोकर धम्म से दे मारा। अरे ये क्या उस बडे ड्रम से भी बल्टियां और डिब्बे निकलने लगे। बेचारा नल ये देखकर हांफने लगा। इसके बाद तो अगल-बगल के घरों से भी इतनी ही तादाद में बल्टियों और डिब्बों के निकलने का सिलसिला चल निकला। अब तो बेचारे नल को पसीना आ गया । निगम वालों ने टंकी  से पानी को धीरे-धीरे छोडऩा शुरू किया। अब हर किसी को पानी लेने की जल्दी है। किसी के बच्चे को स्कूल जाना है, तो किसी के पति को ड्यूटी पर जाना है। किसी का बच्चा प्यास से बिलबिला रहा है। इसी को लेकर वहां जमा औरतों में कहा-सुनी होने लगी। बात इतनी बढ़ गई कि बाल्टियां चलने की आवाज आने लगी। जब तक कोई वहां पहुंचता 5 महिलाएं लहूलुहान हो चली थीं। सुबह-सुबह पानी के लिए खून बहने लगा। ये देखकर नल को बहुत दु:ख हुआ। अब उसने पानी देने की बजाय खों...खों ...खों...खों करना शुरू कर दिया। कुछ महिलाएं थाने गईं तो कुछ बचे हुए पानी से नहाने गईं। जो बच्चे अभी...अभी यहां जोर-जोर से चीख रहे थे वे भी खेलने चले गए,मगर एक सवाल यहां की नीरवता में गूंजता रहा कि आखिर ये गरीब पानी के लिए कब तक खून बहाएंगे? नल ने अब खों...खों....करना छोड़कर पानी देना बंद कर दिया है और मेरी बाल्टी भी भर चुकी है। यानि आज सुबह का पानी चला गया अब बाल्टी लेकर मैं भी निकलता हूं घर की ओर.... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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