कमीशन की भेंट चढ़ते मिशन


 सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है, इल्ज़ाम आइने पे लगाना फुज़ूल है।


सुराज के दावे और काम के नाम पर धड़ाम होने वाली सरकार के कारनामें तो आए दिन देखने को मिलते हैं। ऐसा ही कारनामा कांकेर के  कोयलीबेड़ा  विकासखंड के टोलापारा में दिखाई दिया। जहां 13 परिवारों के साठ से ज्यादा लोग गड्ढे का पानी पी रहे हैं। सरकार हैंडपंप लगाने से लेकर तमाम दावे करती है, मगर ये सरकारी घोषणाएं इन गरीबों के किस ओर से गुजर गईं, कमबख़्त पता ही नहीं चला? गांव के सरपंच से जब इसकी बात की गई तो वे ठहाका मार कर हंस पड़े। अफसोस हो रहा है कि हम कैसे-कैसे लोगों को चुन लेते हैं। सरकार का विकास करने का मिशन कमीशन की भेंट चढ़ चुका है। जो जिस तरफ से जितना पा रहा है भरपूर कमा रहा है। इसका खुलासा भी समय-समय पर पडऩे वाले छापों में बरामद होने वाली रकम और तमाम भू-खंडों के साथ ही साथ जेवरातों के आधार पर होता है।  पहले किसी के पास लाख-दो लाख मिल जाता था तो पूरे इलाके में उसके नाम को लेकर लोग तरह-तरह की बातें करने लगते थे। अब तो आलम ये है कि चपरासी भी पकड़ाता है तो बरामदगी कई करोड़ की होती है। अधिकारियों की तो बात ही छोड़  दीजिए। उस पर भी तुर्रा तो ये है कि   अभियंताओं के यहां तो अक्सर पड़ता है मगर ठेकेदारों के यहां छापे की खबरें कम ही मिल पाती हैं।
सरकारी अधिकारी माने बिना काम अच्छी तन्ख्वाह और सुविधाओं की गारंटी। ऐसे में अगर काम किया तो ऊपरी कमाई। अफसोस तो इस बात का है कि एक सरकारी अधिकारी का बाप बड़े गर्व से बताता है कि हमारा बेटा चार-पांच लाख रुपए तो महीने में यूं ही कमा लेता है। यानि बाप जिस पूत को कमाऊं बता रहा है असल में वो कमाऊं न होकर चोर है। और ये पिता भी कैसा पिता है कि अपने चोर बेटे को हीरो बनाकर लोगों के सामने पेश कर रहा है?
सरकार ने हर काम के लिए विभाग तो बनाए, मगर उनकी जिम्मेदारियां नहीं तय की। वेतन ताबड़तोड़ बढ़ाए गए, मगर जिम्मेदारियों को उस हिसाब से तय नहीं किया गया। जब कि ये गलत है, अगर सरकार पैसा दे रही है तो उसकी जवाबदेही भी उसी आधार पर होनी चाहिए। जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा ये समस्याएं अपने आप खत्म होने वाली नहीं हैं।

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