कमाल ताजा मछली का

कटाक्ष-

निखट्टू
संपादन आखिर क्या होता है इसको समझने के लिए एक लघु कथा का स्मरण आता है। एक मछली बाजार में एक आदमी जिंदा मछलियां बेंचा करता था। मछलियों की गुणवत्ता अच्छी होने के कारण जब दुकान खूब चलने लगी, तो एक राय देने वाला आ गया। उसने कहा इतनी सुंदर दुकान इतनी अच्छी मछलियां.... यहां एक बोर्ड क्यों नहीं लगवा देते कि यहां ताजा मछली मिलती है? दुकानदार ने उसका कहा मान लिया उसने बोर्ड लगवा दिया। इसके बाद एक शराबी उधर से गुजरा उसने बोर्ड देखा और दुकान के दूसरी ओर इशारा करके बोला उधर मिलती है क्या दुकानदार बोला नहीं तो उसने कहा सबको पता है कि यहीं ताजा मछली मिलती है। इस लिए इस बोर्ड में यहां की कोई जरूरत नहीं। दुकानदार ने यहां को मिटा दिया। अब बचा ताजा मछली मिलती है। फिर एक  राय देने वाला आ गया। उसने कहा मछली भी बासी होती है क्या? दुकानदार ने कहा नहीं। तो उसने कहा फिर बोर्ड पर ताजा क्यों लिखवाया? इसको मिटाओ। दुकानदार ने उस पर भी पेंट मार दिया। अब बचा... मछली मिलती है। कुछ देर बाद फिर एक राय देने वाला आ टपका और हाथ से बोतल का इशारा दिखा कर बोला मिलती है क्या?दुकानदार ने कहा नहीं। उसने कहा मछली की दुकान है तो मछली ही मिलेगी न? मछली क्यों लिखवाया? इसको काटो। दुकानदार तत्काल उसको भी साफ कर दिया। अब बचा मिलती है। फिर एक राय देने वाला आ गया। बोला मिलती है तभी तू बैठा है, अगर नहीं मिलती तो तू यहां रहता क्या? दुकानदार बोला नहीं। बोला इसको हटाओ मिलती है अच्छा नहीं लगता... आखिर क्या मिलती है? दुकानदार ने मिटा दिया। पाटिया साफ..... इसके थोड़ी देर बाद एक राय देने वाला फिर आ धमका और बोला इतनी बढिय़ा दुकान, ताजी मछलियां और साफ पड़ा बोर्ड अरे यार इस पर लिखवा क्यों नहीं देते कि यहां ताजा मछली मिलती है? तो देखा आपने ताजा मछली का कमाल?   तो मेरे भाई ये हिंदुस्तान है यहां राय देने वालों की कमी नहीं है। इससे पहले कि इस कटाक्ष पर भी कोई राय देने वाला आ जाए मैं निकल लेता हूं घर... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
 

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