सरकारी शाला का गड़बड़झाला

कटाक्ष-

निखट्टू
 कल हमारे कपूत कबारू पी के दारू प्राथमिक शाला में जा धमके। चेले को लडख़ड़ाते पांव आते देख गुरू जी खा गए गच्चा। बस्ते की तलाशी ली तो उसमें निकला बच्चा यानि छोटी बॉटल। ये देखकर अध्यापक जोर से दहाड़ा... चल सुना पांच का पहाड़ा। बच्चे ने शुरू किया पांच एकम पांच... पांच दूनी दस ओखर आगे बस। मास्टर साहब का पारा सातवें आसमान पर चला गया। उन्होंने बच्चे को फटकारते हुए कहा ओखर आगे बोल। सुनते ही कबारू का माथा ठनका। बिगड़ते हुए बोला ओखर आगे कभू पढ़ाए रहे का? ओखर आगे तोला आवत हे तो सुना... मोला तो नइं आवै। सुनते ही मैं चकरा गया। सर.. सिर झुका कर खड़े हो गए। शिक्षा का ये हाल देखकर मेरी आत्मा कांप गई। इसके बाद मैंने कबारू से पूछा कि तूने दारू क्यों पी? उसने कहा सरकार का सहयोग कर रहा हूं। मैंने पूछा कैसे... वो बोला इसका राजस्व सरकारी खजाने में जाता है। आज तक आपने दूध पर कभी टैक्स लगते देखा है क्या? सुनकर मेरी भी बोलती बंद हो गई। कबारू अपनी ही रौ में बोलता चला गया। आए हैं उपदेश देने.... इनको नहीं पता कि हमारे देश में लोग दारू नकद और दूध उधारी का पीते हैं। हालांकि मिलावट दोनों में होती है। और बीजापुर में सरकारी दूध पीने से क्या हुआ बताने की जरूरत नहीं है। आप अब यही पूछेंगे न कि तू क्यों पीकर स्कूल आया है। तो ये विद्या भी गुरूजी ने ही सिखाया है। जब गुरूजी का पैग दूसरे कमरे में बनाता हूं तो दो घूंट पीकर ही इनको पकड़ाता हूं। सिगरेट जलाने के बाद लगा लेता हूं दो कश... मैंने कहा बस बेटा बस। तुझे अब ऐसी गंदी जगह की सीढिय़ां नहीं चढऩा बेटा तुमको इस स्कूल में अब नहीं पढऩा। अरे स्कूल सरकारी है भइया मगर बेटा तो मेरा है न? इसको पढ़ाने और अच्छा इंसान बनाने का जिम्मा भी तो मुझे ही उठाना पड़ेगा। लिहाजा इसको लेकर अब मैं चलता हूं घर कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय..जय।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव