भालुओं के भोजन पर अधिकारियों का डाका


जामवंत परियोजना में करोड़ों का खेल, कामकाज में विभाग फेल


भालुओं का इंसानों से टकराव को रोकने के लिए बनाई गई जामवंत परियोजना में संभावनाएं अनंत। फिर भी राज्य में हो रहा जामवंत का अंत। जांच के नाम पर वन विभाग की आलमारियों में ठूंसी जा रही फाइलें। विभागीय कारस्तानी की सारी कहानी बयां करती हैं। वर्ष 2014 में इसके लिए जहां 2 करोड़ तो इस बार 2.75 करोड़ का बजट कैम्पा निधि से आया है। ऐसा वन मंत्री महेश गागड़ा ने बताया है। इतना मोटा बजट होने के बावजूद भी समस्या है बड़ी भारी। भालुओं का भोजन डकार रहे हैं विभाग के अधिकारी, और भूखे भालू टूट पड़ते हैं इंसानों पर। ऐसे में प्रशासन के इन जिम्मेदार अधिकारियों से सीधा सा सवाल कि बताएं श्रीमान आखिर और कब तक ये जंगली भालू लेते रहेंगे इंसानों की जान?


रायपुर। वर्ष 2014 में 2 करोड़ जामवंत परियोजना का बजट था, मगर काम एक पैसे का भी नहीं दिखाई पड़ा। सारा बजट फाइलों में काम दिखा कर हड़प लिया गया। यही कारण है कि इंसान और भालुओं का टकराव राज्य में बढ़ता जा रहा है। इतना मोटा पैसा आने के बावजूद भी धरातल पर काम न दिखाई देना वन विभाग की कार्यशैली पर ही सवालिया निशान लगाता है।
छछानपैरी मामला गया ठंडे बस्ते में-
इसी साल मार्च में महासमुंद के छछानपैरी के जंगलों में एक मादा भालू ने कथित तौर पर 3 वन विभाग के कर्मचारियों की हत्या कर दी थी। उसके बाद वन विभाग और पुलिस की संयुक्त टीम ने उस भालू को 150 गोलियां मारी थीं। जिसमें से उसके शरीर में महज 16 गोलियां ही लगी बताई जाती हैं। जांच के नाम मामले को उस वक्त अटकाया और लटकाया गया था। वो मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया।
फिर आया 2.75 करोड़ का बजट-
 छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जंगली भालुओं के संरक्षण के लिए जामवंत परियोजना के तहत छत्तीसगढ़ के पांच वन मंडलों को दो करोड़ 74 लाख 60 हजार रुपये का आवंटन किया गया है। वन मंत्री महेश गागड़ा ने बताया कि यह राशि पिछले वित्तीय वर्ष 2015-16 में राज्य क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा) निधि से जारी की गई है।

क्या-क्या होगा इन पैसों से-
उल्लेखनीय है कि राज्य के उत्तरी हिस्से के पांच वनमंडलों मरवाही, कटघोरा, कोरिया, मनेंद्रगढ़ एवं कवर्धा में जामवंत परियोजना संचालित की जा रही है। इस परियोजना के तहत ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों में भालुओं के विचरण को रोकने और जंगलों में उन्हें उनकी रुचि के अनुरूप आहार दिलाने के लिए फलदार पौधे लगाए जाएंगे और जल स्रोतों का भी विकास और निर्माण किया जाएगा। इन वन मंडलों के अंतर्गत भालुओं की अधिक संख्या होने के कारण इन क्षेत्रों में भालुओं द्वारा ग्रामीणों पर आक्रमण कर उन्हें घायल एवं मारने की घटनाएं सामने आई हैं।
कहां-कहां होंगे काम-
जामवंत परियोजना वनमंडल मरवाही के अंतर्गत वन परिक्षेत्र मरवाही, पेंड्रा एवं गौरेला, वनमंडल कटघोरा के वन परिक्षेत्र-पसान, जटगा एवं केंदई, वनमंडल कोरिया के वन परिक्षेत्र-खडगवां, चिरमिरी, बैकुंठपुर एवं देवगढ़, वनमंडल मनेंद्रगढ़ के वन परिक्षेत्र-मनेंद्रगढ़ वनमंडल कवर्धा के वनपरिक्षेत्र-कवर्धा एवं पंडरिया वनमंडल कांकेर के वनपरिक्षेत्र-कांकेर एवं चारामा में इस परियोजना को लागू किया गया है।
14 साल से नहीं हुआ कोई काम-
यही दावे पिछले 14 सालों से दुहराए जा रहे हैं, मगर असलियत ये है कि विभागीय अधिकारियों का इससे कोई खास लेना देना नहीं रहता है।
संसदीय सचिव को पता तक नहीं-
इस मामले का सबसे चौंकाने वाला सच तो ये है कि वन विभाग की संसदीय सचिव चंपादेवी पावले को इस योजना की पूरी जानकारी तक नहीं है। उनसे जब बजट को लेकर हमारी सरकार ने सवाल किया तो उनकी हालत देखने लायक थी।
सचिव ने भी गेंद फेंक दी वन्यजीव संरक्षण विभाग के पाले में-
वन विभाग के सचिव आर.पी. मंडल से जब इस बात की जानकारी चाही गई तो उन्होंने ये कह कर खुद का बचाव किया कि ये हमारा मामला थोड़े है। इसकी जानकारी तो आपको वन्यजीव संरक्षण विभाग से मिलेगी।
ऐसे में साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि वन्य जीवों के कितने हितैषी हैं छत्तीसगढ़ शासन के अधिकारी-कर्मचारी और मंत्री।
हर साल होता है इंसानों का भालुआं से संघर्ष-
छत्तीसगढ़ में पूरे साल भालुओं और इंसानो में संघर्ष होता ही रहता है। इसमें बड़ी तादाद में लोगों की मौत होती है तो तमाम लोग घायल भी हो जाया करते हैं। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि अगर भालुओं को उनके खाने की पसंदीदा चीजें जंगलों में ही मिल जाएं तो इस टकराव में कमी आ सकती है।
क्या है भालुओं का पसंदीदा भोजन-
वन्यजीवों के जानकारों का मानना है कि भालुओं का पसंदीदा भोजन दीमकों की बांबी, शहद और महुआ माना जाता है। इसकी खोज में ये अक्सर जंगलों से बाहर निकल आते हैं, जहां इनका सबका इंसानों से पड़ता है। ऐसे में होता है दोनों में संघर्ष और जाती है लोगों की जान।

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