पलाबो के पाले में जांबाज

कटाक्ष-

 निखट्टू
सेना में बंगाल रेजीमेंट नहीं होने का $गम बंगाल के तीन युवाओं कालू, बुलू और मालू को सता रहा था। इन तीनों ने मिलकर तमाम लोगों को इस बात के लिए तैयार किया कि राज्य में ऐसा होना चाहिए। आंदोलन शुरू हुए और सरकार ने बात मान ली। बंगाल रेजीमेंट का गठन हो गया। इसके बाद इसके रंगरूटों को प्रशिक्षण देने के लिए सिख रेजीमेंट के जांबाज अफसर को इसका दायित्व सौंपा गया। पूरी रेजीमेंट को बांग्लादेश बार्डर पर तैनात किया गया। इसी बीच बांग्लादेश ने भारत पर हमला कर दिया। अब कालू, बुलू और मालू को डर सताने लगा कि मारे गए तो क्या होगा। इन तीनों ने युक्ति निकाली उस पंजाबी अफसर को बंग्ला भाषा नहीं आती थी। अफसर ने बार्डर पर तैनात अपने जवानों को ललकारते हुए कहा ऐ खुदीराम दे पुत्तर आज त्वाड़े देश नु किसी ने अक्ख दिखाई है। तुम्हें उसकी इस हर$कत का जवाब देना है। अब कालू धीरे से फुसफुसाया... ये पंजाबी तो लगता है कि मरवा कर ही दम लेगा। बुलू बोला गुरु कोई तरीका निकालो नहीं तो समझो मरे। अब मालू दोनों की बात सुनकर अधिकारी से बोला कि ..सर पलाबो... यानि भागें...पंजाबी अफसर को लगा कि उसके सैनिक वास्तव में उत्साह में आ गए हैं। उसने कहा हां ...हां पलाओ... और खुद भी असलहा निकाल कर जो बोले सो निहाल...... सतश्री अकाल बोलकर बांग्लादेश के बार्डर में घुस गया। आखिरकार बांग्लादेश रायफल्स के जवानों ने इस अफसर को जिंदा पकड़ लिया। सरदार ने बांग्लादेशी जवानों को डांटा कहा ज्यादा जोश मत दिखाओ हमारे पीछे खुदीराम दे पुत्तर आ रहे हैं। बांग्लादेश रायफल्स के जवान ठठाकर हंस पड़े। बोले कहां हैं तुम्हारे खुदीराम दे पुत्तर? सरदार ने पीछे मुड़कर देखा तो पीछे से सारे बंगाली लड़के नदारद। तब उनको अपनी गलती का एहसास हुआ। इधर कालू, बुलू और मालू वहां से बस पकड़ी और किसी तरह हांफते खांसते अपने मुहल्ले में आ पहुंचे और कान पकड़कर सेना में जाने से तौबा कर लिया। ऐसा ही काम राज्य में एक राष्ट्रीय पार्टी के लोग कर रहे हैं। अब बाकी आप खुद ही समझदार हैं। तो अब आज बातों को यहीं विराम देते हैं कर फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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