निगम का कचरा कांड
कटाक्ष-
निखट्टू
रायपुर का नगर पालिक निगम विकास की नई परिभाषा गढ रहा है। जनता से कर लेकर आनंद कर रहा है। पुरानी राजधानी को पहचानने का नया फार्मूला सामने आया है। वो ये कि जहां हल्की सी हवा चलने पर ही चेहरे पर प्लास्टिक की थैलियां आकर चिपकनी शुरू हो जाएं। तो समझ लेना कि रायपुर नगर पालिक निगम के क्षेत्र में आप पहुंच चुके हैं। निगम असल में वही है कि जिसके अधिकारी और कर्मचारी उसको चर-चोंथ कर मस्त रहें। उनको किसी का गम न रहे तो उस संस्थान को निगम कहते हैं। ये कर्मचारी उसको ऐसा कर ही देते हैं कि वो संस्था न रह जाने पाए। अब भला ऐसी नगर पालिक निगम पर किसे गर्व नहीं होगा? कि पहले नलों के पानी में जोंक मिलती थी, अब सांप निकलने लगे। तो वहीं तमाम वार्डों के लोग पीलिया से त्रस्त बताए जाते हैं। यानि हम कर देकर मर रहे हैं और वो आनंद कर रहे हैं। निगम की सारी व्यवस्थाएं फाइलों में सरपट दौड़ रही हैं। अब तो इसमें उनका हाथ बटाने कुछ राज्य सरकार के आराम पसंद अधिकारी भी आ धमके हैं। ऐसे में कमीशन खोरी और भ्रष्टाचार में अब दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी हो रही है। तो वहीं राजधानी की जनता अपने करम को रो रही है। महापौर निगम को एक स्वायत्त संस्था बताकर राज्य शासन की द$खलंदाजी का दबी जुबान से विरोध दर्ज करा रहे हैं। बिल्कुल उसी अंदाज में जैसे कोई बच्चा अपने पापा के कान में बताता है कि उसको लघुशंका की समस्या है। नगर में ये किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस का लबादा ओढ़े महापौर को किस-किस भाजपाई नेता का समर्थन और संबल प्राप्त है। निगम को डुबाने में इन लोगों का विशेष महत्व है। जनता का बढ़ता आक्रोश जिस दिन भयंकर रूप लेकर निगम की दहलीज लांघेगा उसी दिन उस चकाचक सफेद ह्वाइट हाउस में इनके काले कारनामों का काला इतिहास दर्ज होगा, क्योंकि इनकी काली सियासत जनता बखूबी समझ रही है। गरीब को निपटाने और अमीरों को पटाने का खेल- खेल कर ही तो ये व्यवस्था शहर में फेल हुई है। ऐसे में इनसे किसी भी तरह की अच्छाई की तो उम्मीद करना ही सरासर बेमानी है। कई अधिकारियों ने इस निगम को इतना चरा कि पूरा शहर होने को आ गया कचरा। ऐसे में नाक दबाकर घूमिए कि आप रायपुर में हैं। तो हुजूर आप घूमिए रायपुर शहर और हम भी जा रहे हैं अपने घर। कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
निखट्टू
रायपुर का नगर पालिक निगम विकास की नई परिभाषा गढ रहा है। जनता से कर लेकर आनंद कर रहा है। पुरानी राजधानी को पहचानने का नया फार्मूला सामने आया है। वो ये कि जहां हल्की सी हवा चलने पर ही चेहरे पर प्लास्टिक की थैलियां आकर चिपकनी शुरू हो जाएं। तो समझ लेना कि रायपुर नगर पालिक निगम के क्षेत्र में आप पहुंच चुके हैं। निगम असल में वही है कि जिसके अधिकारी और कर्मचारी उसको चर-चोंथ कर मस्त रहें। उनको किसी का गम न रहे तो उस संस्थान को निगम कहते हैं। ये कर्मचारी उसको ऐसा कर ही देते हैं कि वो संस्था न रह जाने पाए। अब भला ऐसी नगर पालिक निगम पर किसे गर्व नहीं होगा? कि पहले नलों के पानी में जोंक मिलती थी, अब सांप निकलने लगे। तो वहीं तमाम वार्डों के लोग पीलिया से त्रस्त बताए जाते हैं। यानि हम कर देकर मर रहे हैं और वो आनंद कर रहे हैं। निगम की सारी व्यवस्थाएं फाइलों में सरपट दौड़ रही हैं। अब तो इसमें उनका हाथ बटाने कुछ राज्य सरकार के आराम पसंद अधिकारी भी आ धमके हैं। ऐसे में कमीशन खोरी और भ्रष्टाचार में अब दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी हो रही है। तो वहीं राजधानी की जनता अपने करम को रो रही है। महापौर निगम को एक स्वायत्त संस्था बताकर राज्य शासन की द$खलंदाजी का दबी जुबान से विरोध दर्ज करा रहे हैं। बिल्कुल उसी अंदाज में जैसे कोई बच्चा अपने पापा के कान में बताता है कि उसको लघुशंका की समस्या है। नगर में ये किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस का लबादा ओढ़े महापौर को किस-किस भाजपाई नेता का समर्थन और संबल प्राप्त है। निगम को डुबाने में इन लोगों का विशेष महत्व है। जनता का बढ़ता आक्रोश जिस दिन भयंकर रूप लेकर निगम की दहलीज लांघेगा उसी दिन उस चकाचक सफेद ह्वाइट हाउस में इनके काले कारनामों का काला इतिहास दर्ज होगा, क्योंकि इनकी काली सियासत जनता बखूबी समझ रही है। गरीब को निपटाने और अमीरों को पटाने का खेल- खेल कर ही तो ये व्यवस्था शहर में फेल हुई है। ऐसे में इनसे किसी भी तरह की अच्छाई की तो उम्मीद करना ही सरासर बेमानी है। कई अधिकारियों ने इस निगम को इतना चरा कि पूरा शहर होने को आ गया कचरा। ऐसे में नाक दबाकर घूमिए कि आप रायपुर में हैं। तो हुजूर आप घूमिए रायपुर शहर और हम भी जा रहे हैं अपने घर। कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
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