11 दिनों तक पेड़ से लटकाकर रखा मासूम का शव-



 मौताणे का होता रहा इंतजार,पुलिस ने कराया अंतिम संस्कार- फ्लैग




उदयपुर। साल 2016 के जाते-जाते राजस्थान से एक ऐसी ख़बर सामने आयी है जिसने मानवता को झकझोक कर रख दिया है। राजस्थान के उदयपुर जिले के कोटड़ा इलाके के बडली गांव में एक मासूम बच्चे के शव के साथ ऐसा अमानवीय कार्य किया गया कि देखकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं।

11 दिनों तक अंतिम संस्कार का इंतजार करती रही लाश-
यहां एक बच्चे की लाश पिछले 11 दिनों तक अंतिम संस्कार के इंतजार में पेड़ पर लटकी है। दरअसल, यह मासूम बच्चा राहुल अपने माता-पिता के साथ गुजरात में एक मृत्युभोज में शामिल होने गया था। उस दौरान एक कार से हुए हादसे में बच्चे की मौत हो गई वहीं, उसकी मां गंभीर रूप से घायल हो गयी जिनका चिकित्सालय में इलाज जारी है।

बच्चे के शव को पेड़ से बांधकर रखा गया
इस हादसे के बाद बच्चे के परिजन और समाज के लोगों ने गुजरात के खैराज थाने में मामला दर्ज कराकर शव का पोस्टमार्टम कराया। उसके बाद आदिवासी इलाके की कुप्रथा मौताणे के चलते राहुल के शव को समाज के लोगों ने एक खाट से बांधकर जमीन से दस फीट ऊपर पेड़ पर बांध दिया। बच्चे के शव को मौताणे की मांग को लेकर 11 दिन से गांव में पेड़ से लटकती खाट पर रखा गया।

मामला बढऩे पर पुलिस की खुली आंखें
जब मामला मीडिया में उछला तो कोटड़ा थाना पुलिस मौके पर पहुंची और समझाइश कर मासूम के शव को पेड़ से नीचे उतरवाया। पुलिस द्वारा बच्चे के शव का अंतिम संस्कार करवाया गया। मृतक के पिता उदयपुर के एमबी चिकित्सालय में इलाजरत हैं तो वहीं उसकी घायल मां का इलाज गुजरात के हिम्मतनगर में जारी है। आदिवासी इलाके की कुप्रथा के चलते राहुल के शव को अंतिम संस्कार का इंतेजार करना पड़ा लेकिन मामला बढ़ता देख पुलिस ने अब फुर्ती दिखाते हुए शव का अंतिम संस्कार करवाया।

क्या है ये मौताणा प्रथा-
राजस्थान के कुछ इलाकों में रह रहे लोगों के अपने रीति-रिवाज हैं। खासतौर से राजस्थान के उदयपुर, बांसवाड़ा, सिरोही एवं पाली क्षेत्र के आदिवासी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों के बीच इस प्रथा का सर्वाधिक चलन है। गौर हो कि मौताणा प्रथा आदिवासी इलाकों में जनजातीय समुदाय में प्रचलित हैं। ऐसी धारणा हैं कि इस प्रथा की शुरुआत तो सामाजिक न्याय के उद्देश्य से हुई थी जिसमें यदि किसी ने किसी व्यक्ति की हत्या कर दी तो दोषी को दंड स्वरूप हर्जाना देना पड़ता था लेकिन अब अन्य कारण से हुई मौत पर भी आदिवासी मौताणा मांग लेते हैं। वहीं पिछले कुछ सालों में देखा गया हैं कि किसी भी वजह से हुई अपनों की मौत का दोष दूसरे पर मढ़ कर जबरन मौताणा वसूल किया जाने लगा हैं। इसमें सामने वाले कुटुंब के घर को लूटा जाता हैं और आग तक लगा दी जाती हैं।

दरअसल, जब मृतक का परिवार किसी को दोषी मानकर उसे मौताणा चुकाने के लिए मजबूर करता हैं तो आदिवासियों की अपनी अदालत लगती हैं, जहां पंच दोषी को सफाई का मौका दिए बिना ही मौताणा चुकाने का फरमान जारी कर देते हैं।

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