भारत की बदलती तस्वीर
नोट बंदी पर भी तमाम बैंक अफसरों की गंदी नज़रें जम गईं। उन्होंने हर बार की तरह इसका भी फायदा उठाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। तो वहीं देश के प्रधानमंत्री भी इस मामले पर आंखें गड़ाए बैठे थे। उन्होंने तत्काल बैंकों की स्टिंग करवा दी। अब भ्रष्टाचारी अधिकारियों के काले कारनामों का कच्चा चि_ा वित्त मंत्रालय पहुंच चुका है। माना जा रहा है कि जैसे ही हालात सामान्य होंगे इन पर कानून का शिकंजा कसेगा। प्रधानमंत्री ने भी स्पष्ट रूप से संकेत दे दिया है कि जो लोग गड़बड़ी कर रहे हैं। उनमें से कोई भी नहीं बचेगा। बैंकों को पहले ही वित्त मंत्रालय ने निर्देश दे दिया था कि सारे बैंकों में सीसीटीवी कैमरे चालू हालत में होने चाहिए। उनकी रिकार्डिंग की दो सीडी बनेगी। एक बैंक में रहेगी तो दूसरी वित्त्त मंत्रालय को भेजी जाएगी।
व्यवस्था की नक्कारापंथी की वजह से तमाम योजनाएं भ्रष्टाचारियों की जेब में चली जाती थीं। प्रधानमंत्री ने भी माना कि दिल्ली से चले एक रुपए में से महज सत्रह पैसे ही जरूरत मंदों तक पहुंच पाते हंै। 83 प्रतिशत रकम भ्रष्टाचारी डकार जाते हैं। ऐसे देश में नोट बंदी करना कितना घातक होगा ये तो प्रधानमंत्री ही समझ सकते हैं। नोट बंदी क्या हुई तमाम बैंक के प्रबंधक और कैशियर अपने को भगवान मान बैठे। तो वहीं कुछ मिशन कमीशन चला दिए। जब नकेल कसनी शुरू हुई तो पता चला कि ये तो गड़बड़ हो गया?
सवाल तो ये भी उठता है कि आखिर ये स्थितियां आई ही क्यों?अगर देश की सीबीआई, आयकर विभाग, सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम्स, भ्रष्टाचार निरोधक शाखाओं के अधिकारी और पुलिस तथा खुफिया विभाग और बैंक तथा डाककर्मीं पूरी तरह से अपनी-अपनी भूमिका का निर्वहन किए होते, तो मुझे नहीं लगता कि ऐसी स्थितियां निर्मित होतीं। यहां तो बड़ी संख्या में सरकारी विभागों में नौकरी करने वालों का सपना होता है कि कैसे कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसे अपनी जेब में भर लें? यही लोग अगर पहले भी उसी तरह से टाइट हुए होते तो आज ये नौबत ही नहीं आती।
मजेदार बात तो ये की मलाई खाने के ये लोग इतने आदी हो चुके थे कि प्रधानमंत्री के अभियान की भी हवा निकालने में इन लोगों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। नए रुपए क्या हाथ लगे हर कोई खुद मुख़्तार बन बैठा। इनको ये भी पता नहीं है कि प्रधानमंत्री और उनकी टीम में इनसे कई गुना तेज दिमाग रखने वालों का पूरा कुनबा बैठा हुआ है।
जिस तरह देश की 1.30 अरब जनता ने प्रधानमंत्री को सहयोग किया। अगर उसी तरह की ईमानदारी बैक के अधिकारी दिखाते तो आज शायद ये नौबत ही नहीं आती। पूरी दुनिया को इससे और भी अच्छा संदेश जाता कि भारत की प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह से चुस्त-दुरुस्त है। महज कुछ लोगों की वहज से तमाम अच्छे अधिकारियों की मेहनत पर भी पानी फिर गया। लोगों के मन में अब यही छवि बनने लगी है कि बैंक अधिकारियों ने बेईमानी कर प्रधानमंत्री की महती योजना को फ्लाप करने की साजिश रची। ये दीगर बात है कि वे अपने इस कुचक्र में कामयाब नहीं हो सके। वैसे भी ये दुनिया के एक सफल प्रधानमंत्री का सपना है। वो उदार मन से अपने अधिकारियों को सुधरने के मौक पर मौके दिए जा रहे हैं। ऐसे में अब सुधरना और न सुधरना उनके हाथ में है जिनकी जिम्मेदारी है। सुधर गए तो ठीक वर्ना नपेंगे ही इसमें कोई दो राय नहीं है, क्योंकि मेरा देश बदल रहा है।
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