हथियारों का बढ़ता बाजार




दुनिया महाविनाशक हथियारों का जख़ीरा जमा करने में लगी है। कुछ राष्ट्र खुद बना रहे हैं तो कुछ अपने काम भर का माल रखकर बाकी दूसरों को बेंच कर कमाई करने में लगे हैं। आतंकवाद पर आक्रमण के बहाने इनका प्रदर्शन भी खुलकर किया जा रहा है। पहले ये एकाधिकार सिर्फ अमेरिका के पास था, मगर अब इसमें रूस भी शामिल हो चला है। इधर चीन भी इन्हीं के साथ मिलकर कुछेक देशों को पटाने में लगा है। भारत को भी मजबूरन अपने हथियारों के भण्डार में बढोत्तरी करनी पड़ रही है। इसी क्रम में आज उसने उड़ीसा के व्हीलर द्वीप से अग्रि-5 का सफल परीक्षण किया। ये मिसाइल एक टन का परमाणु अस्त्र अपने साथ ले जाने में सक्षम बताई जाती है। इसकी रफ्तार ढाई किलोमीटर प्रति सेकेंड होगी। पांच हजार किलोमीटर से ज्यादा रेंज की इस मिसाइल को लेकर चीन और पाकिस्तान के कान पहले से ही खड़े हैं। चीन अपनी सुरक्षा के लिए रूस से एस-400 सिस्टम खरीद रहा है। मिसाइल सुरक्षा के मामले में इसको दुनिया में बेजोड़ माना गया है। तो वहीं भारत ने इसकी काट रखने वाले राफेल विमानों का सौदा फ्रांस से करके इसको चुनौती दी है। राफेल के दो स्क्वाड्रन हमारी वायुसेनाओं को जल्दी ही मिल जाएंगे।  अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन भी भारत में अपने एफ-16 ब्लॉक 70 विमानों को बनाने की पेशकश भारत से कर चुकी है। ग्रिपेन भी भारत आना चाहती है। इनके आ जाने से हमारी सुरक्षा क्षमता में उल्लेखनीय वृध्दि होगी। डीआरडीओ में पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का विकास भी किया जा रहा है। भारत भी अब इन्हीं देशों की तर्ज पर घातक हथियारों का एक बड़ा बाजार बनकर उभर रहा है। आने वाले दशकों में भारतीय अर्थ व्यवस्था इनसे मजबूत होगी। इससे हमारे युवाओं का पाश्चात्य देशों की ओर पलायन भी रुकेगा। इसका भी फायदा देश को होगा। सरकार को चाहिए कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया को पूरी ताकत के साथ लागू करे। इसमें आने वाली रुकावटों को तत्काल प्रभाव से दूर किया जाए। यदि ऐसा किया जाएगा तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे देश का इंजीनियर और डॉक्टर अथवा कॉमन लॉयर विदेशों की ओर जाने के पहले सौ बार सोचेंगे।
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