शिक्षक नहीं सुना पाया 17 का पहाड़ा


मांझीकुटनी हो या जामकुटनी पढ़ाई के नाम पर कुछ भी नहीं-
-जिले के कोयलीबेड़ा ब्लॉक के धुर नक्सलवाद प्रभावित इलाकों के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा का स्तर देखकर कोई भी बिना हिले नहीं रह सकता। यहां मांझीकुटनी हो या जामकुटनी पढाई के नाम पर कहीं कुछ भी नहीं। हफ्ते में दो दिन खुलता है सरकारी स्कूल। ज्यादातर बच्चे स्कूल का रास्ता चुके हैं भूल। तो वहीं हमारी टीम के सामने सौभाग्य से मौजूद एक शिक्षक नहीं सुना पाए 17 का पहाड़ा। कहा जोड़ कर बताना पड़ेगा। धुर नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में स्कूलों के जिम्मेदार ही करने में लगे हैं शिक्षा का बंटाधार। सवाल तो ये है कि जिन शिक्षक महोदय को खुद 17 का पहाड़ा  नहीं आता हो, वे भला बच्चों को क्या पढाएंगे?

कांकेर ।
क्या है पूरा मामला-
 जिले के घोर नक्सल प्रभावित अंदरूनी इलाकों में एक तरफ जहाँ वीडियों लेक्चर का हवाला देकर शिक्षा विभाग आदिवासी बहुल इलाकों में शिक्षा का स्तर सुधारने का दावा कर रही है ।  तो वहीं शिक्षा विभाग का यह दावा खोखला साबित हो ता नजऱ आ रहा है । 
हफ्ते में दो दिन खुलता है स्कूल-
  बात करें मांझीकुटनी प्राथमिक शाला की, तो यह स्कूल हफ्ते में मात्र एक या दो दिन ही खुलता है ।  बाकी दिन स्कूल के गेट पर ताला लटकता नजऱ  आता है।  शिक्षक स्कूल से नदारद रहते हैं ।  आलम यह है कि शिक्षकों की मनमानी के चलते इस स्कूल के बच्चे स्कूल ही जाना छोड़ दिये हैं ।  वहीं शिक्षकों की इस रवैये के चलते पालकों में भी आक्रोश है ।  मांझीकुटनी के ग्रामीण अपने बच्चों का भविष्य अन्धकार में देख कर और स्कूल से नदारद रहने वाले शिक्षकों से परेशान होकर मामले की शिकायत शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से कई बार कर चुके हैं ।  लेकिन शिकायत के बाद भी लापरवाह शिक्षकों की क्लास लेने एक भी जिम्मेदार अधिकारी एक बार भी इस स्कूल में नहीं पहुंचा है ।  यही कारण है कि इस स्कूल में पढऩे वाले शिक्षकों के हौसले बुलंद है ।
अधिकारी न आएं इसकी भी कर रखी है व्यवस्था-
 शिक्षकों की मनमानी स्कूल से नदारद रहना  ही नहीं बल्कि इससे भी बढ़कर  बात ये है कि  कही भूले भटके इस स्कूल में कोई अधिकारी न पहुंच जाये अपनी चोरी छुपाने के लिए इसकी भी तैयरी स्कूल के शिक्षकों ने कर रखी है ।  शिक्षक हफ्ते में एक या दो दिन स्कूल आकर छत्रों के अटेंडेंस शीट में पूरे हफ्ते की हजिरी लगा देते हंै ।  ताकि स्कूल में कोई भी अधिकारी छापामार कार्रवाई करे तो वे अपनी नौकरी बचा सकें ।
क्या हे मांझीकुटनी की प्राथमिक शाला का हाल-
 मांझीकुटनी के ग्रामीण परेशान होकर अब अपने बच्चों को दूरदराज के स्कूल में भेजना शुरू कर दिया है ताकि उनके बच्चे कुछ सीख सकें ।  वहीं जो ग्रामीण अपने बच्चों को दूरदराज के स्कूल में नहीं भेज सकते उनके बच्चे स्कूल में पढऩे के बजाये गांव में घूमते नजऱ आते हैं ।
बॉक्स-
 स्कूल में नहीं बनता मध्याह्न भोजन-
  स्कूली बच्चों के लिए सरकार के द्वारा चलाई जा रही महत्पूर्ण योजना मध्याह्न भोजन मांझीकुटनी प्राथमिक शाला के छात्रों को नसीब नहीं होता । दरअसल स्कूल हफ्ते में एक या दो दिन ही खुलने की वजह से छात्रों के लिए मध्याह्न भोजन नहीं बनाया जाता है ।  वही ंमध्याह्न भोजन के नाम पर
जारी रकम की भी बंदरबांट हो जाती है।
देर से आते हैं शिक्षक-
                           नक्सल प्रभावित आदिवासी बहुल ईलाकों में शिक्षा का स्तर कैसा है वह मांझीकुटनी प्राथमिक शाला का हाल जानकर ही नहीं बल्कि तीन किलों मीटर दूर जाने के बाद ग्राम जामकुटनी के प्राथमिक शाला को भी देखकर नजऱ आता है ।  जामकुटनी स्कूल के बच्चे 10 बजे स्कूल खुलने के समय पर स्कूल तो पहुंच जाते हैं,  लेकिन बच्चों को स्कूल का ताला खुलने का इंतज़ार रहता है ।  इस स्कूल के शिक्षक भी अपने मनमानी समय पर स्कूल पहुंचते हंै । 
अध्यापक नहीं सुना पाए 17 का पहाड़ा-
गौरतलब है कि जामकुटनी स्कूल में पढाने वाले शिक्षकों को 17 का पहाड़ा तक नहीं आता ।  एक शिक्षक से पहाड़ा पूछा गया तो शिक्षक की जुबान लडख़ड़ा गई और महाशय बोल पड़े की मुझे पहाड़ा नहीं आता जोड़ के बताना पड़ेगा ।  इन दो स्कूलों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि नक्सल प्रभावित आदिवासी बहुल इलाकों में शिक्षा के स्तर को बढऩे के लिए प्रशासन कितना प्रयास कर रहा है ।  और जब इन इलकों में जिम्मेदार अधिकारियों से शिक्षा के घटते स्तर पर सवाल किया जाता है तो अधिकारी अपनी दबी जुबान से नक्सलियों का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेते हैं।

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