नोटबंदी से छाई मीडिया में मंदी



-प्रधानमंत्री की नोटबंदी से मीडिया जगत में भारी मंदी आ गई है। लोकतंत्र का चौथ खंभा भी अब खौफ में  है। आने वाले दिनों में भी बाजार ों में सन्नाटे के आसार से इनकी प्रसार संख्या का बंटाधार हो चुका है। दस रुपए के अखबार को चार रुपए में बेचने के लिए खरीददार ढूंढने पड़ रहे हैं। तो वहीं विज्ञापन का तो पूरा कारोबार ही चौपट हो गया है। लक्ष्य पूरा नहीं कर पाने के कारण लोग विज्ञापन विभाग की नौकरी छोड़ रहे हैं। छंटनी की मार झेल रहे हैं पत्रकार, तो वहीं नेट से मार कर कॉपी पेस्ट किए जा रहे हैं समाचार। कड़वी सच्चाई तो यही है कि दबे कुचलों की मु$खाल$फत करने वालों की ही आज कोई सुनने वाला नहीं है। इनकी तो समझ में नहीं आ रहा कि ये किधर जाएं?

खौफ में चौथा खंभा और सकते में पत्रकार, चौपट हो चुका विज्ञापनों का कारोबार,
रायपुर।


घाटे के कारोबार पर नोटबंदी की मार-
जानकारों की मानें तो बड़े अखबारों में पेजों की संख्या भी ज्यादा होती है। तो वहीं इसकी लागत लगभग 10 रुपए प्रति कॉपी आती है। उस अखबार को  4 रुपए में बेचने के लिए भी अब खरीददार ढूंढने से भी नहीं मिल रहे हैं। जानकारों का मानना है कि इनकी प्रसार संख्या में भी 20 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। पहले जहां सर्वे करने वाले लड़के गली मोहल्ले में अखबार की प्रतियां और उपहार लेकर ग्राहकों के दरवाजों पर खड़े रहते थे। वे पिछले एक महीने से ज्यादा समय से लापता हैं।
विज्ञापन का कारोबार भी चौपट-
एक तो वैसे भी बाजार में सन्नाटा पसरा है तो वहीं अखबारों के मिलने वाले विज्ञापनों का तो पूरा बाजार ही चौपट हो चुका है। विज्ञापन प्रतिनिधियों की समझ में नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें? कैसे परिस्थितियों पर काबू पाया जाए। तो वहीं हाउस के विज्ञापन विभाग के आला अधिकारी उनके ऊपर  लक्ष्य पूरा करने के लिए दबाव बना रहे हैं। इसके कारण लोग अब तेजी से नौकरियां छोड़ रहे हंै। उनका कहना है कि आदमी को दो हजार के लिए पूरे-पूरे दिन लाइन में लगना पड़ रहा है। तो ऐसे में विज्ञापन देने की फुर्सत किसे है।
छोटे अखबरों पर गहराया संकट-
नोटबंदी के मंदी की सबसे ज्यादा मार छोटे अखबारों पर पड़ी है। उनकी पूछ परख बिल्कुल कम हो गई है। ऐसे समय में मीडिया हाउसेज के मालिकों ं  के सामने तो ये संकट है कि कैसे अखबार चलाएं।
 कर्मचारियों की हो रही छंटनी-
मंदी की मार से हलाकान अखबार के कार्यालयों में भी लगातार कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है। दफ्तरों में लगातार सनसनी का माहौल रहता है कि कल देखिए किसका नंबर आता है?
बंद होने की कतार में कई अखबार-
राजधानी के जानकारों की अगर मानें तो तमाम अखबार तो बंद होने की कतार में लगे हैं। कुछ लोग ये भी देखने  में लगे हैं कि देखिए किसका शटर कब डाउन होता है। तो वहीं खबर ये भी सामने आ रही है कि एक बड़े मीडिया हाउस के अंग्रेजी अखबार को भी बंद करने की तैयारी जारी है। वैसे भी बाजार के हालात जल्दी सामान्य होने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं। सवाल तो यही है कि ऐसे हालात में आखिरी मीडिया हाउसेज का क्या होगा?





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