उठाकर स्वच्छता की मशाल, मिसाल बनीं मोनिका




 जिनके होंठों पे हंसी पांव में छाले होंगे, हां वही लोग तुम्हें ढूंढने वाले होंगे। सरगुजा के दुर्गम जंगली रास्ते, जहां हर कदम पर हमलावर हाथियों के हमले का भय और नदियों और पहाड़ों की परवाह न करते हुए, जान की बाजी लगाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों को साकार करने निकली एक बहादुर बेटी, अपनी टीम के साथ निरंतर आगे बढ़ती जा रही है। मैनपाट के दुर्गम गांव कदनई में पहुंचकर वो थोड़ा रुकती हैं, और फिर गांव के एक-एक घर में जाकर स्वच्छता के फायदे बताना शुरू करती हैं। उनके चेहरे को देखकर कहीं से भी नहीं लगता कि ये बहादुर बिटिया इतने पहाड़ों को लांघकर नदियों के बीच से गुजरी है। विपरीत परिस्थितियों में अदम्य साहस और अपनी मिलनसार छवि से लोगों का दिल जीतने वाली ये कोई और नहीं बल्कि नेशनल रूरल लाइवलीवुड मिशन की डॉयरेक्टर व पंचायत एवं विकास विभाग की अपर आयुक्त मोनिका सिंह हैं। इन्होंने अपने इसी जुनून से अपनी पहिचान बनाई है।
पहुंच विहीन कदनई गांव पहुंचकर बताई शौचालय की अच्छाइयां

अम्बिकापुर। 
कौन हैं मोनिका सिंह-
सरगुजा कलेक्टर भीम सिंह की पत्नी मोनिका सिंह पूर्व में भी ओडीएफ़ के प्रति उनकी गंभीरता को लेकर चर्चे में रही हैं ।
काम करने का जुनून हो तो ऐसा-
 सरगुजा को ओडीएफ़ बनाने की की राह पर चल पडी हैं आयुक्त् मोनिका सिंह।  इनके सिर पर शौचालय निर्माण का ऐसा जुनून सवार है कि हर मुश्किल इनके लिए आसान हो जाती है।  लिहाजा मैनपाट के कदनई गाँव तक जाने के लिये इस बहादुर बेटी ने पत्थरों पर पैर रख कर बड़ी मुश्किल से नदी को पार किया।  पूरी टीम के साथ गाँव कदनई पहुंची और गाँव के हर घर में जा -जाकर लोगों को शौचालय बनवाने के लिए न सिर्फ जागरूक किया बल्कि हर इंसान को शौचालय से होने वाले फायदे के बारे में बताया।

तकलीफ में नहीं बल्कि सहभागिता से बनें शौचालय : मोनिका
स्वछता अभियान के तहत गाँव -गाँव घूम कर लोगों को शौचालय बनवाने के लिए जागरूक करने निकली  आयुक्त मोनिका सिंह ने इस दौरान बताया की उनके द्वारा लोगों को शौचालय निर्माण के लिए सिर्फ जागरूकता अभियान ही नहीं चलाया जा रहा है, बल्कि वो चाहती हैं कि लोग शौचालय निर्माण कर खुद सहभागी बनें। पंचायत के द्वारा जबरन शौचायल बनवा दिया जाये और लोगों उसका उपयोग न करें तो उस शौचालय का कोई अर्थ नहीं होगा।

पूर्वज नहीं जानते थे इसका महत्व-
उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज शौचालय का महत्व नहीं जानते थे लेकिन धीरे- धीरे जागरूकता आई आज हम शौचालय का उपयोग कर रहे हंै। ऐसे ही जो लोग आज भी जानकारी के आभाव में शौचालय का महत्व नहीं समझ पाए हैं उनको शौचालय की उपयोगिता समझाना और उनकी सहभागिता के साथ सरगुजा को खुले शौच मुक्त करने के लिए यह अभियान चलाया जा रहा है। इस दौरान श्रीमती सिंह ने एक बार फिर कहा कि हम खुले में शौच नहीं करते इस लिए खुद को जानवरों से अलग किये बैठे हैं वरना उनमें और हममें क्या फर्क?
आदिवासियों की बनीं मसीहा-
आयुक्त मोनिका सिंह के मिलनसार व्यवहार को देखकर आदिवासियों में उनकी छवि लगातार एक मसीहा की बनने लगी है। लोग उनके कहे अनुसार काम करने को भी तैयार हो रहे हैं। वे सिर्फ स्वच्छता पर ही लेक्चर नहीं दे रहीं बल्कि आदिवासियों की तमाम समस्याओं को भी बड़े ध्यान से सुनती हैं। उसका निराकरण कैसे हो इसकी भी सलाह उन आदिवासियों को दे रही हैं। जहां सरकारी अधिकारी वातानुकूलित कार्यालयों से बाहर निकलने में भी खुद की तौहीन समझते हैं। वहीं श्रीमती सिंह जैसे अफसरों पर समाज और देश को नाज़ है। और जनता को ये विश्वास भी है कि ऐसे अधिकारी ही सरकारी योजनाओं को सफल बनाने का माद्दा रखते हैं। नि:संदेह सरगुजा भी जल्दी ही ओडीएफ होगा इसमें कोई संदेह नहीं लगता।
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