नाले के काले पानी से जलाया चूल्हा,
भर रहा है 12 लोगों का पेट, गरीब इंसान ने दिखाया अपनी बुध्दि का जलवा
श्यामराव शिर्के ने कर दिखाया ये कमाल, जिसने बदल दिया मोहल्ले के एक परिवार का सूरत-ए हाल। जिस नाले के काले बदबूदार पानी देखकर लोग नाक भौंह सिकोड़ते हैं। उसी में छिपी मिथेन गैस को इन्होंने पाइप के सहारे गरीब परिवार की रसोई तक पहुंचाया। उसने तीली जलाई और चूल्हे से नीली लौ निकलने लगी। आज उसी चूल्हे से 12 लोगों का भोजन बनाया जा रहा है। सूबे के अफसर इसे नमामि गंगे प्रोजेक्ट में शामिल कराने की कोशिश कर रहे हैं। भारत सरकार का मंत्रालय इस खोज पर गंभीर विमर्श कर रहा है। इस तकनीक का पेटेंट भी कराया जा चुका है।
रायपुर।
क्या है पूरा मामला-
एक शख्स हैं श्यामराव शिर्के। सपने ऊंचे थे और पॉकेट खाली। ऐसे में इंजीनियर तो नहीं बन सके, लेकिन मेकेनिकल ठेकेदार के तौर पर बाल्को, एनटीपीसी के साथ-साथ दूसरी कंपनियों के लिए काम करते रहे। चाहते थे कुछ नया करना। ऐसे में तंगहाली के बाद भी ठेकेदारी छोड़ दी और रिसर्च में जुट गये।
भारती परिवार का जला चूल्हा-
लोग उनको अधिक दिनों तक गंदे नाले के पास बड़े-बड़े कंटेनर लेकर खड़े और कुछ करते देखते थे। साथ में कुछ पाइप्स भी होती थीं। वर्षों की कोशिश के बाद सफलता मिली। गंदे पानी में छुपे मिथेन के भंडार को उन्होंने खोजा और उसे पाइपों के सहारे किचेन तक ले गए। फिर क्या था चूल्हा जलने लगा। उनको सबसे ज्यादा मदद की एक परिवार ने। रायपुर के पद्मश्री भारती। इनके परिवार ने ही इनकी खोज की गई तकनीक से चूल्हा जलाया और 12 सदस्यीय परिवार का खाना भी पकाया। पिछले कुछ महीनों से उनका प्रयोग सफलतापूर्वक अपना काम कर रहा है।
तकनीक को कराया पेटेंट-
इस खोज को पांच साल के लिए पेटेंट करा लिया गया है। राज्य काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नालॉजी के वैज्ञानिक अमित दुबे के मुताबिक हमने इस खोज को पूरा करने के लिए 30 हजार की मदद की थी। अपनी खोज के तहत जिस तरह का ईंधन उन्होंने खोजा है, वह दुनिया में अनोखी ही है। कोशिश है कि इसे भारत सरकार ग्रांट देना शुरू कर दे।
इस तकनीक के तहत यूं बनाई जाती है मिथेन गैस-
नाले के गंदे पानी में लगभग दो-तीन फीट नीचे एक हजार लीटर के तीन-तीन टैंक रखे जाते हैं। सभी एक-दूजे से जुड़े होते हैं। इनके नीचे एक तार की जाली होती है। इससे कचरा ऊपर नहीं आ पता है। साथ ही पानी का दबाव और बहाव भी तेज बना रहता है। इस प्रक्रिया के तहत बुलबुले बनते हैं, जिससे मिथेन गैस होता है। इसे पाइपों के सहारे चूल्हे तक ले जाया जाता है और वह जलने लगता है।
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