मिशन कमीशन




देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि यहां योजनाएं बाद में बनती हैं। उनको बांट कर खाने का प्लान पहले ही तैयार रहता है। ऐसा करने वाले अधिकारी और कर्मचारी भी अधिकांश सरकारी सेवाओं में कार्यरत होते हैं। ये जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं।
 सबसे दुखद बात तो ये है कि इन लोगों ने देश के प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना नोटबंदी को भी नहीं बख्शा। पूरे देश को कतार में खड़ा कर दिया? महज कुछ प्रतिशत पैसे वालों की सेवा के लिए? देश कतार में लगा रहा, लोगों के बेटियों की शादियां टूटती रहीं। लोगों की सांसें थमती रहीं, मगर इनको तो बस कमीशन चाहिए? देश मरता है उनकी बला से? प्रधानमंत्री की योजना का मजाक बनता है इससे उनको कोई लेनादेना नहीं है। घूस के लिए इस स्तर पर गिर चुके लोगों पर क्या देशद्रोह का मामला दायर नहीं होना चाहिए? उसी बहती गंगा में पुलिस ने थी दस बाल्टियां भर लीं। कमीशन लेकर किसी को भी आगे-पीछे करने लगे। तो वहीं कुछ लोग कैशियर से सांठगांठ कर बैंक के बाहर ही नोट बदलने का धंधा चलाना शुरू कर दिया। कुछ लोगों ने शिकायत क्या कर दी। उनको लाठियों से सरेआम यूं पीटा गया गोया ये कोई सज़ाआफ्ता मुलजि़म हों।
ऐसे ही अधिकारियों और कर्मचारियों की वजह से ही सरकारी योजनाओं का सम्यक क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। जरूरी सुविधाएं जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचती हैं। देश के पैसों का नुकसान होता है। लोग हलाकान भी होते हैं। किसी की सुविधाएं किसी और को बांट कर ये अपनी जेबें भरते हैं और मौज करते हैं। इनको पकडऩे के लिए बनाए गए तमाम विभागों के अधिकारियों की मानसिकता बन चुकी है कि भला कौन जाए? अगर वातानुकूलित कार्यालय में बैठने भर से वेतन पक जाता है तो फिर कौन जाए इधर -उधर दौडऩे? ऊपर से नौकरी भी सरकारी है, छूटेगी नहीं। ज्यादा से ज्यादा कुछ दिनों तक निलंबित रहेंगे। उसके बाद फिर गेटिंग-सेटिंग करके वापस काम पर आ जाएंगे।
सरकार इस वक्त बड़े बदलाव के दौर से गुज़र रही है। ऐसे में सरकार की कोशिश होनी चाहिए कि सबसे पहले तो भ्रष्टाचारियों को बाहर का रास्ता दिखाए। इसके अलावा ये भी सुनिश्चित किया जाए कि जो हैं वो ईमानदारी से अपने काम को अंजाम देंगे। इसके अलावा हर किसी की जवाबदेही तय की जाए और उसके कामों का  हिसाब भी जनता के सामने पेश किया जाए। ऐसा जबतक न हो उसको उसके वेतन का भुगतान न मिले। इसके अलावा गलत कामों में संलिप्त पाए जाने पर उसके खिलाफ न्यायालय में वाद दायर हो। अदालत से न्याय मिलने के बाद ही वो अधिकारी या फिर कर्मचारी उस कुर्सी पर बैठे। यही बात नेताओं और मंत्रियों और संतरियों पर भी लागू होनी चाहिए।

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