श्मशान और ज्ञान



मरघट में मॉडल हाईस्कूल चलता देखकर राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगना जायज है। शिक्षा  के अधिकारों की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले प्रवीण अधिकारियों ने ये भी देखने की जहमत नहीं उठाई कि यहां रोज-रोज की चीख-पुकार और लाशों की दुर्गंध का बच्चों की मानसिकता पर क्या प्रभाव पड़ेगा? उनकी तो एक ही मानसिकता रही होगी कि जहां जमीन मिली बनाओ और अपना   हिस्सा लेकर निकल लो जल्दी से। यहां कौन सा मेरा बेटा या फिर इकलौती बेटी पढऩे आने जा रही है। यही कारण है कि ऐसे अविवेकपूर्ण निर्णय सरकारी अधिकारी लेते रहते हैं। छत्तीसगढ़ शासन को चाहिए कि जिन-जिन अधिकारियों ने इस हाई स्कूल को तामीर करने की इज़ाजत दी हो उनके बच्चों को यहां जरूर पढ़ाया जाए, ताकि कोई भी अधिकारी ऐसे फैसले लेने से पहले हजार बार सोचे। इन विद्वान अधिकारियों ने यह तक नहीं सोचा कि जहां रोज-रोज किसी को दफनाया तो किसी को जलाया जाता हो। वहां बैठकर पढ़ाई कर पाना कहां तक संभव है? ऐसे में बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी उन पर कितनी भारी पड़ती होगी। बेचारे ईमानदार आदिवासियों के बच्चों को राजा हरिश्चंद्र बना दिया गया। वो श्मशान में बिके और वहीं नौकरी की। तो वहीं ये बच्चे भी श्मशान में ज्ञान अर्जित कर रहे हैं। ऐसी ही कठिन परिस्थितियों में तपकर जो लोग निकलते हैं वे ही समाज और देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखते हैं। हीरे को खदान से जब निकाला जाता है तो उसको घिस-घिस कर उसका असली आकार दिया जाता है। ये एक बड़ी ही कठिन प्रक्रिया होती है, मगर घिस जाने के बाद उस हीरे की कीमत दुनिया जानती है।
हम ये उम्मीद करते हैं कि उस हाईस्कूल में पढऩे वाले बस्तर के लाल अपने ज्ञान की मिसाल कायम कर बस्तर का नाम रौशन करेंगे। अगर बस्तर से अब तक आने वाली वो खबरें सही हैं कि आदिवासी बच्चों के गणित और अंग्रेजी का ज्ञान सामान्य बच्चों से ज्यादा है। तो हमें पूर्ण विश्वास है कि ये बच्चे एक न एक दिन नया इतिहास जरूर लिखेंंगे।

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