आलसी होती अफसरशाही

खटर-पटर-


निखट्टू-
संतों.... एक बार एक आम के बाग मेें दो आलसी लेटे हुए थे। उधर से एक आदमी गुजरा तो एक आलसी ने कहा भैया... बड़ी देर से मेरे सीने पर ये सुगंधित आम गिरा हुआ है और महक भी रहा है। अगर आप इसको मेरे मुंह में निचोड़ देते तो बड़ी मेहरबानी होती। मुसाफिर ने उसको हैरत भरी निगाह से देखा और बोला आप तो मुझे एक नंबर के आलसी लगते हो। अरे सीने पर गिरे आम को भी नहीं खा सकते? तब तक बगल वाले आलसी ने हंसते हुए कहा सही पहिचाने भैया....ये बहुत बड़ा आलसी है। अब देखिए न कल रात को मेरा मुंह कुत्ता चाट रहा था मगर इस कम्बख़्त ने हटाया तक नहीं। वो तो भला हो उस कुत्ते का कि उसकी समझ में शायद आ गया कि वो गलत चीज को चाट रहा है। लिहाजा उसने उकता कर छोड़ दिया। सुनकर वो मुसाफिर हंसता हुआ अपने सफर पर आगे बढ़ गया।
इससे भी बड़े-बड़े आलसियों का समूचा कुनबा हमारे देश में मौजूद है। य$कीन न आए तो जाकर देख लीजिए। इनको पचासवां वेतनमान दे दीजिए मगर इनकी आदत है अलाली और दलाली। ये दोनों नहीं छोडऩे वाले। इनकी इसी लापरवाही का खामियाजा देश और देश के लोगों को भोगना पड़ रहा है। अरे जब बैठे मिले खाने तो कौन जाए कमाने? हमने तो ऐसे -ऐसे आलसी देखे हैं जो फाइल को आलमारी से निकाले तक नहीं और रिटायर्ड होकर चले गए। उनका भी यही तर्क था कि फाइल निकाल कर कौन सा तीर मार लेंगे? कहीं ऊंच-नीच हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। ऐसे में भइया वेतन मिल रहा है, पदोन्नति-क्रमोन्नति हो रही है तो फिर फिकर काहे की? इसके अलावा अगर कुछ होगा तो देखेंगे।
ये दीगर बात है कि उनकी इस लापरवाही के चलते पता नहीं कितने परिवारों की पूरी जिंदगी नर्क बन गई। तो उनकी दूसरी पीढ़ी के लोग तिल-तिल कर जीने को अभिशप्त हैं। सरकार ने साहब को भी उनकी तन्ख्वाह पूरी दे दी, मगर जिसकी जेब से पैसे गए उसको आज तक न्याय नहीं मिला। ये कैसी व्यवस्था है? समय पर न्याय न  मिलना भी बड़े अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे में अगर किसी अधिकारी के चलते किसी परिवार को न्याय न मिले तो फिर उसके जिम्मेदार अधिकारी को छूट क्यों दे दी जाती है? इस प्रश्र का जवाब न तो सरकार के पास है और न ही उसके उन जिम्मेदार अधिकारियों के पास जिनके अंडर में ऐसे आलसी अधिकारी काम करते हैं। देश की दुर्दशा में ऐसे अधिकारियों और नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। जनता इनसे जब तक सामूहिक रूप से इनके कार्यों का हिसाब नहीं मांगेगी, ये सुधरने से रहे। इतना जानने के बावजूद भी अगर आप सोचते हैं कि ये आज नहीं तो कल जाएंगे सुधर तो आप यहीं बैठिए...अब हम निकल लेते हैं अपने घर...कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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