तंत्र की संवेदनहीनता





सुराज की सरकार के सुखिया मुखिया अच्छे दिनों को लाने का वादा करते रहे। राज्य के आदिवासी तिल-तिल कर मरते रहे। भ्रष्टाचारी अधिकारी नोटों से अपना घर भरते रहे। गंभीर रूप से बीमार पड़ा राज्य का स्वास्थ्य विभाग तो लगता है कोमा में जा चुका है। अब तो संजीवनी की आस से भी लोग निराश होने लगे। इसका नजारा तो उस समय देखने को मिला जब रायगढ़ जिले की घरघोड़ा तहसील के गांव भेंन्द्री में आकाशीय बिजली गिरने से एक अधेड़ की मौत हो गई। गरीब आदिवासी के परिवार पर विपदा का  पहाड़ टूट पड़ा। क्योंकि वही एक मात्र कमाऊं व्यक्ति था। मृतक के परिजनों ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने हेतु संजीवनी एम्बुलेंस मंगवाने के लिए 108 पर फोन पर फोन लगाए। 18 घंटे इंतजार करने के बाद भी एम्बुलेंस जब नहीं आई तो रोते-कलपते परिजनों ने अपने आंसू पोंछे और लाश को गठरी में बांधकर एक रिक् शे पर चारपाई रखी और उसी पर लाश रखकर अस्पताल ले आए। जिसने भी ये दृश्य देखा सन्न रह गया। हर किसी के मुंह से यही निकला कि क्या यही हैं अच्छे दिन? क्या इसी दिन के लिए देश की जनता ने राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार बनाई थी? मोटा वेतन और भत्ता लेने वाले मंत्रियों और तमाम आला अधिकारियों के पास ऐसे संवेदनशील मामलों को देखने तक के लिए वक्त नहीं है? सेवा के नाम पर बना तंत्र किसी काम का नहीं रह गया है। मौका आने पर उसकी तंत्रिकाएं ही लगता है जवाब दे देती हैं। एक नहीं कई बार ऐसे तंत्र की नाकामी की तस्वीरें लोक के सामने आ चुकी हैं। इसके बावजूद भी ये तंत्र सुधरने का नाम तक नहीं ले रहा है।
सरकार अगर अभी भी अपनी छवि सुधारना चाहती है तो तत्काल ऐसे विभागों के ऐसे निकम्मे अधिकारियों की सूची बनाए और उनको बाहर का रास्ता दिखाए, जो बिना काम किए सरकारी खजाने से मोटा वेतन ले जा रहे हैं। हर अधिकारी और कर्मचारी की कर्मकुंडली बनाई जाए, जिसका जैसा काम हो उसको उतना ही दाम दिया जाए। इसके साथ ही साथ हर अधिकारी की अपनी जिम्मेदारी निर्धारित की जाए। यदि वो अधिकारी अपनी जिम्मेदारी का सही ढंग से निर्वहन नहीं करता तो उसकी सेवाएं समाप्त कर उसकी जगह किसी दूसरे योग्य व्यक्ति की भर्ती की जाए। सरकारी नौकरी एक बार भर्ती हो जाने पर बपौती न बनने पाए। इस बात का भी पूर्णरूपेण ध्यान रखा जाए।
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